ठण्डे रस का भरा माल था
जब गरमी की ऋतु आती है!
लू तन-मन को झुलसाती है!!
तब आता तरबूज सुहाना!
ठण्डक देता इसको खाना!!
यह बाजारों में बिकते हैं!
फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!!
एक रोज मन में यह ठाना!
देखें इनका ठौर-ठिकाना!!
पहुँचे जब हम नदी किनारे!
बेलों पर थे अजब नजारे!!
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे!
जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!!
इनमें से था एक उठाया!
बैठ खेत में इसको खाया!!
इसका गूदा लाल-लाल था!
ठण्डे रस का भरा माल था!!
अच्छी बाल कविता।
बाल गीत अच्छा लगा .