गीतिका/ग़ज़ल

*****गजले-मीर रहेगी*****

जब तक दिल में पीर रहेगी.
गजलों की जागीर रहेगी.
खीर अगर नमकीन बना दो,
तो फिर क्या वो खीर रहेगी ?
राँझे तब तक पैदा होंगे,
जब तक कोई हीर रहेगी.
बँटवारे में सब कुछ ले लो,
मेरे सँग तकदीर रहेगी.
दिल में इमारत बन जाये तो,
होकर वो तामीर रहेगी.
महँगी मढ़ने से क्या हरदम,
ज्यों की त्यों तस्वीर रहेगी ?
हम न रहेंगे तो भी क्या है,
अपनी एक नजीर रहेगी.
कल भी अदब की बातें होंगी,
कल भी गजले-मीर रहेगी.
डाॅ.कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

One thought on “*****गजले-मीर रहेगी*****

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत ख़ूब !!

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