हाइकु/सेदोका

चंद हाइकु कविताएँ

futne lga
1

फूटने लगा
ललछौंहा उजास
पूरबी छोर ।

2
प्यासा पादप
ताके अंतिम क्षण
बरसो मेघ ।
3
खिला सुमन
प्रेमी सूरज संग /गाल चूमती हवा
चूमे किरण / हँसे किरण ।

4
मसल नैन
सुबह की चौखट
जागती रैन ।

masal nain

5
मधुमालिती
अलि भरें सागर
मधु सागर ।

6
कमल-कुञ्ज
अलि मधु सौरभ
प्रीत का पुञ्ज ।

kamal kunj

7
प्रेम तुम्हारा
खिली मधुमालिती
मन फुलौरा ।

8
विभा शर्माई
धूप ने जो अपनी
छटा फैलाई ।

9
छेड़े पुरवा
तरु से जा लिपटी
कोमल लता।

10
सूना शज़र
विहग थे गूँजते
चारों प्रहर ।

11
ठूँठ उदास
बीत गया बसंत
फूटे न पात ।

12
विदा पत्तियाँ
शाखों से गले मिल
रो पड़ा तरु ।

13
हवा-हिंडोले
प्रेम-प्रीत का राग
सुनाते फिरे ।

14
रोये बदरा
पगलाई पवन
भीगती धरा ।

15
धुले है पात
झूम उठी है शाखें
दरख़्त ह्वास ।

16
अमृत वर्षा
सहेजती बसुधा
पूनम निशा ।

17
रात हठीली
बैठी पाँव पसारे
भोर ने ठेली ।

raat hatheli

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

One thought on “चंद हाइकु कविताएँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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