नारी अस्मिता : सिर्फ़ प्रदर्शन नहीं , भावनाएं भी!
हर घर, गली द्वार में आज इतने दुःशासन,
कहाँ से आयेगें इतने श्री कृष्ण!
लगता है जैसे हर जगह है , धृतराष्ट्र का शासन,
जीवन का उत्सव ,कोई उत्साह से कैसे मनाये ,
जब कोई पीड़िता ,इतना कुछ सह जाये।
देश की आधी आबादी नारी ,
जिसके प्रेम , त्याग, परिश्रम से
टिकी है मानवता सारी
जो है धर्म की धुरी ,
माँ -रूप में ईश्वर की प्रतिकृति
पुरुष के अहं के चेहरे भिन्न -भिन्न,
लगाते से लगते हैं, नारी अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह,
अर्धांगिनी, मानसी, देवी, कितने सम्बोधनों से है छला,
पर पुरुष सोचों में कुछ नहीं बदला,
अभी भी समझते हैं उसे कमज़ोर, अबला!
कब ख़त्म होगी ये संकीर्ण सोच और मानसिक विकृति ,
कि आहत होकर नारी को स्वयं ही लेनी पड़े अपने जीवन से मुक्ति,
सड़ी-गली परम्पराओं को अब नहीं ढोना है,
‘दामिनी’ के दमन से जागृत देश का कोना-कोना है।
नारी के सम्मान में आंच लाए,
ऐसे कर्मों , विचारों को ,तुरंत तिलांजलि दी जाये,
हर नारी में अपनी माँ , बहिन निहारें
बुरी नज़र डालने वाले अपनी सोच बदल डालें
मत करो उसके धैर्य का परीक्षण ,
कि करना पड़े उसे काली माँ का रूप धारण ,
नारी सम्मान में सिर्फ़ सम्बोधन नाकाफ़ी,
जुडी होना चाहिए सच्ची सोच और भावनाएं भी.
— अनुपमा श्रीवास्तव ‘अनुश्री’