बाल कहानी

तीन वरदान

मोनू एक गरीब सपेरा था। वह अपनी विधवा माँ के साथ एक झोपड़ी में रहता था। गरीबी के कारण वह पढ़ लिख नहीं सका। इसलिए जंगल में साँप पकड़कर उनका जहर निकालता और पिटारी में भरकर लोगो को घूम-घूम कर दिखाता। जो लोग साँपों को नाग देवता के रूप में पूजते, वे मोनू को पैसे दूध और पुराने कपडे दे देते जिससे वह बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा करता।

एक दिन शाम को वह घर लौटते समय ठोकर लगने से गिर गया। उसकी पिटारी लुढ़ककर दूर जा गिरी। पिटारी का ढक्कन खुल गया। ढक्कन खुलते ही साँप निकलकर सरपट झाडियों की ओर भागा। इधर मोनू भी अपनी चोट भूलकर उसके पीछे दौड़ा पर उसे साँप कही नहीं नजर आया। वह रुआंसा होकर खड़ा हो गया । बिना साँप के वह घर नहीं जा सकता था नहीं तो अगले दिन काम पर कैसे जाता।

कुछ सोचकर वह जंगल की ओर बढ़ गया। वहाँ पर उसने साँप ढूँढना शुरू किया। रात गहरी होती जा रही थी और उसे डर भी लग रहा था। तभी अचानक उसने सूखे पत्तों के पास सरसराहट की आवाज सुनी। वह चौकन्ना होकर उधर देखने लगा। उसे साँप की पूँछ दिखाई दी। उसने लपककर उसे पकड़ लिया पर साँप के हाथ में आते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गई। वह साँप पूरा सफेद रंग का था और चाँदनी रात में वह चाँदी की तरह चम-चम चमक रहा था। मोनू उसे पकड़कर टोकरी में डालने ही वाला था कि साँप मनुष्य की आवाज में बोला – ’अगर तुम मुझे छोड़ दो, तो मैं तुम्हें तीन वरदान दूंगा, जिससे तुम अपनी बाकी की जिंदगी आराम से बिता सकोगे।’

आवाज सुनते ही मोनू की डर के मारे घिग्गी बंध गई। वह तो सर पर पैर रखकर वहाँ से भागा और सीधे अपने घर जाकर ही रूका। दूसरे दिन सुबह जब उसने दरवाजा खोल तो वही सफेद साँप दरवाजे पर बैठा हुआ था। साँप उसे दखते ही बोला -’कल तुम बिना कोई वरदान माँगे ही भाग आये इसलिए मुझे ही आना पड़ा। ’दिन के उजाले में मोनू को अब साँप से अब उतना डर नहीं लग रहा था इसलिए उसने कहा -‘रूको, मैं अपनी माँ से पूछ कर आता हूँ।’

थोड़ी देर बाद उसने आकर साँप से कहा -‘गाँवों के कुओं में बहुत गन्दा और मटमैला पानी है जिससे गाँव वाले अक्सर बीमार रहते है तुम उन कुओं को स्वच्छ और निर्मल जल से भर दो। साँप आश्चर्य से बोला – ‘पर तुमने अपने लिए तो कुछ नहीं माँगा।’ मोनू ने जवाब दिया -‘जब सभी गाँव वाले स्वस्थ रहेंगे तो हमें बहुत खुशी होगी।’

साँप ने कहा -’ठीक है, पर मैं कल फिर आऊंगा। कल तुम अपने लिए कुछ सोच कर रखना।’ यह कहकर साँप गायब हो गया। अगले दिन दरवाजे पर फिर वहीँ सफेद साँप बैठा हुआ था। मोनू के दरवाजा खोलते ही उसने पूछा -‘सोच लिया, क्या माँगना हैं तुम्हे ?’

हाँ, सोच लिया.गाँव वालों के खेत बंजर पड़े हैं इससे उनमे खेती नहीं हो पाती और उन्हें काम की तलाश में भटकना पड़ता है।’

साँप कुछ सोचकर बोला -’तो मैं क्या करू ?’

तुम उनके खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बना दो जिससे उनकी फसल लहलहा जाए।’

साँप ने कहा -’ठीक है, पर कल तुम्हारा आखिरी वरदान बचा हैं , थोड़ा सोच समझकर माँगना।’ ऐसा कहकर साँप चला गया।

तीसरे दिन भी मोनू के दरवाजा खोलने पर साँप पहले की ही तरह वहां बैठा था। उसे देखते ही सांप बोला -‘आज तो जरुर ही तुमने अपने लिए कुछ सोचकर रखा होगा।’

‘नहीं , मेरी इच्छा हैं कि गाँव की सड़के समतल बना दो। उनमे बहुत गड्ढे हैं जिनमे बरसात होने पर पानी भर जाता हैं और लोग गिर जाते हैं।’

साँप कुछ देर तक चुप रहने के बाद बोला -‘ऐसा ही होगा पर अब मैं तुम्हें और वरदान नहीं दे सकता।’

मोनू मुस्कुराकर बोला – ‘जब सब लोग खुश रहेंगे तो मुझे और मेरी माँ को बहुत प्रसन्नता होगी।’

तभी अचानक एक विचित्र बात हुई। साँप तुरंत एक सुन्दर युवती में बदल गया, जिसने सफेद रंग का सिल्क का गाउन पहन रखा था। उसमें हीरे मोती के आभूषण जगमगा रहे थे। मोनू मारे भय के अन्दर की ओर भागने लगा। तभी युवती बोली- ‘डरो मत, मैं इस राज्य की राजकुमारी प्रियंवदा हूँ।’

मोनू हकलाता हुआ बोला-‘अरे, पर तुम साँप कैसे बन गई ?’

राजकुमारी बोली- ‘मुझे अपनी सुन्दरता पर बहुत घमंड था। मैं हमेशा दूसरों का मजाक उड़ाया करती थी। मैं एक दिन राज दरबार में बैठी थी तभी वहाँ एक ऋषि अपने शिष्यों सहित आये।.उनके शरीर पर काले चकत्ते देखकर मैंने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा -‘साँप साँप।’

मेरी बात सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। और ऋषि क्रोधित होकर मुझे देखते हुए बोले -‘तू इसी समय साँप बन जा।’

यह सुनते ही में डर के मारे रोने लगी और पिताजी उनके आगे गिरकर माफी मांगने लगे। जब पिताजी उनके आगे बहुत रोये. तो उन्होंने कहा – ‘मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता पर इसको मुक्त कराने का उपाए बताता हूँ। अगर कोई दयालु और निष्कपट मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए कुछ नहीं माँगकर लोगों के कल्याण की कामना करेगा तो राजकुमारी अपने असली रूप में आ जायेगी और उसी समय से मैं सांप बन गई और मुझे जंगल में छोड़ दिया गया।’

थोडा ठहरकर वह फिर बोली – ‘तुम्हें छोड़कर सभी ने अपने लिए कुछ ना कुछ माँगा जिस कारण मैं आज तक साँप बनी रही।’

मोनू ने खुश होते हुए कहा -‘तो अब आप जल्दी से राजमहल जाईये वहाँ सभी लोग आपको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे।’

राजकुमारी मुस्कुराकर बोली-’पर तुम्हें भी अपनी माँ के साथ राजमहल चलना होगा। यह कहकर वह उन्हें भी राजमहल ले गई। महाराज और महारानी तो राजकुमारी को देखते ही खुशी से झूम उठे। राजकुमारी ने उन्हें मोनू के बारे में सब कुछ बता दिया। महाराज को मोनू का आकर्षक व्यक्तित्व पहली ही नजर में पसंद आ गया था।

उन्होंने पूछा ‘मोनू, क्या तुम राजकुमारी से विवाह करोगे?’

मोनू ने शर्माते हुए हाँ कर दी। दोनों का विवाह धूमधाम से हो गया और वे प्रसन्नता पूर्वक रहे लगे। फिर कभी भी राजकुमारी ने किसी की कुरूपता का मजाक नहीं उड़ाया ।….

डॉ. मंजरी शुक्ल