अन्नदाता है तेरा
अन्नदाता है तेरा मौत निशानी दे दे ।
उसकी फाँसी की कोई और कहानी दे दे ।।
रूपये साठ में होने लगे हैं फर्ज अदा ।
ऐ खुदा आँख में कुछ शर्म का पानी दे दे ।।
लुट गया वो है सियासत के मेहरबानो से ।
बहुत टूटा है यहाँ अपने हुक्मरानों से ।।
दर्द का खूब तमाशा बना के देख लिया ।
जिंदगी मौत बन गयी तेरे बयानों से ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी