मुक्तक/दोहा

अन्नदाता है तेरा

gajendraअन्नदाता है तेरा मौत निशानी दे दे ।
उसकी फाँसी की कोई और कहानी दे दे ।।
रूपये साठ में होने लगे हैं फर्ज अदा ।
ऐ खुदा आँख में कुछ शर्म का पानी दे दे ।।

लुट गया वो है सियासत के मेहरबानो से ।
बहुत टूटा है यहाँ अपने हुक्मरानों से ।।
दर्द का खूब तमाशा बना के देख लिया ।
जिंदगी मौत बन गयी तेरे बयानों से ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com