ग़ज़ल
मेरी साँसों में तुम बसी हो क्या
पूजता हूँ जिसे वही हो क्या
थक गया, ढूंढता रहा तुमको
नम हुई आँख की नमी हो क्या
धूप सी तुम खिली रही मन में
इश्क में मोम सी जली हो क्या
राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
मौन संवाद की धनी हो क्या
आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या
लोग कहते है बंदगी मेरी
प्रेम ,पूजा,अदायगी हो क्या
दर्द बहने लगा नदी बनकर
पार सागर बनी खड़ी हो क्या
जिंदगी, जादुई इबारत हो
राग शब्दो भरी गनी हो क्या
गंध बनकर सजा हुआ माथे
पाक चन्दन में भी ढली हो क्या
——- शशि पुरवार