लघुकथा

बाबा और फ़कीर

शहर से दूर एक निर्जन और वीरान जगह पर एक मंदिर और एक मजार थी, जिस रास्ते पर यह मजार और मंदिर था उस के आस पास बहुत घना जंगल था जिस कारण लोग बाग़ बहुत कम उधर से गुजरते थे केवल चरवाहे जंगल में अपने पशु चराने सुबह शाम उधर से जाते थे वीरान मंदिर को देख कर कई साल पहले वंहा एक बाबा ने अपना डेरा जमा लिया था । बाबा दिन भर गाँव गाँव और शहर जाके भीख मांगता था , उसे पैसे के अलावा आंटा दाल तेल आदि भी खूब मिलता था जिसे वह अपने खाने के लिए बचा के बाकी का बेंच देता था जिससे अच्छे पैसे भी मिल जाते थे ।

मंदिर के साथ जो मज़ार थी उसमे भी एक फ़कीर ने अपना डेरा जमा लिया था , वह भी गाँव गाँव- शहर जाके भीख मांगता और अच्छी आमदनी करता ।
शाम को बाबा और फ़कीर दोनों मिलते पर एक दूसरे से बोलते नहीं थे , फ़कीर जब बाबा को देखता तो अल्लाह तौबा कह के मुंह फेर लेता और जब बाबा फ़कीर को देखता तो राम राम किसका मुंह देख लिया कह के मुंह फेर लेता। यह क्रिया कई सालो तक चलती रही , बाबा और फ़कीर दोनों भीख मांगते और अपने लिए बचा के शेष बेंच देते ।
पर बीते कुछ सालो से दोनों को भीख मिलना कम हो गया था , दिन बहुत कठिनाई से गुजर रहे थे दोनों के पर अब भी दोनों एक दूसरे से बात नहीं करते थे ।
कुछ महीने और बीत गए , अब दोनों को भीख मिलनी लगभग बंद सी हो गई थी । बाबा शरीर सूख के काँटा हो गया था , एक दिन शहर से भीख मांगते हुए वापस आते हुए बहुत थक गया पर झोली खाली थी । थक के वह मंदिर के चबूतरे पर सुस्ताने के लिए बैठ गया, तभी मज़ार पर रहने वाला फ़क़ीर भी शहर से भीख मांग कर वापस आ गया , उसके भी गाल पिचके हुए और शरीर पतला हो गया था लगता था की कई रोज से भरपेट खाना नहीं मिला था। झोला उसका भी खाली था ।
दोनों ने एक दूसरे को देखा पर इस बार पता नहीं क्या समझ के फ़कीर ने बाबा से ‘ आदाब’ कह दिया और उसी चबूतरे पर बैठ गया । बाबा ने भी प्रतिउत्तर में राम राम कहा । जंहा सम्पनता में वे दोनों एक दूसरे का मुंह तक नहीं देखना पसंद करते थे वंही भूख और लाचारी ने दोनों को पास ला दिया था ।
फ़क़ीर ने बाबा की तरफ देखते हुए कहा” क्या बात है ? बहुत कमजोर लग रहे हो ”
बाबा ने फ़कीर की बात सुन के एक ठंडी आह भरी और कहा ” क्या बताऊँ भाई , कई दिनों से आधे पेट खा के गुजरा कर रहा हूँ । गाँव गांव भटकने के बाद भी भीख नहीं मिलती है , शहर में भी अब कोई एक रुपया भी नहीं देता, बड़ी मुश्किल से दस बीस रूपये हो पाते हैं और मुट्ठी भी आंटा । जाने लोगो को क्या हो गया है ,कोई भी भगवान् के नाम पर भीख देने को राजी नहीं है ।

फ़कीर ने कहा – यह बात तुम बिलकुल सही कह रहे हो , अपना भी ऐसा ही हाल है । कोई भी अल्लाह के नाम पर पैसा देने को तैयार नहीं । गाँव में जाओ तो लोग बच्चों के हाथो से आधी कटोरी आंटा भेज देते हैं जिससे खाने भर का भी पूरा नहीं हो पाता।

बाबा ने आगे कहना जारी रखा- हाँ,लगता है की सभी नास्तिक हो गए हैं । पहले कितना मिलता था , कितना दान करते थे लोग की खाने के अलावा बहुत सा बेंच भी देते थे जिससे नगद पैसा भी बहुत आ जाता था , शाम के लिए शराब का इंतेजाम भी आराम से हो जाता था ।

फ़क़ीर ने कहा – सही कहा , मैंने भी कई दिनों से चिलम नहीं लगाई , महंगाई इतनी हो गई है की लोगो ने खैरात देना बंद सा कर दिया है ।
बाबा ने कहा – ऐसे तो हम भूखे मर जायेंगे
फ़क़ीर ने कहा – हाँ कुछ उपाय करना पड़ेगा ताकि आमदनी आये
बाबा बहुत देर तक गंभीर मुद्रा में आँख बंद कर के सोचता रहा , फिर उसने आँखे खोली तो कहा की हम थक गए हैं लोगो के दरवाजे दरवाजे जा जा के अब उपाय ऐसा करना पड़ेगा की लोग हमारे पास आये । फ़क़ीर ने सहमति से सर हिलाया।
बाबा ने फ़कीर के कान में बहुत देर तक कुछ समझता रहा , फ़कीर बीच बीच में सहमति में सर हिलाता रहा।

दो दिन बाद चरवाहे जब अपने पशु को लेके उस मंदिर के पास से गुजरे तो उन्हें बहुत अच्छी खुसबू हवा मे महकती हुई महसूस हुई ,वे जिज्ञासा वश खुसबू के स्रोत की तरफ चल दिए । उन्होंने देखा की मंदिर के परिसर में एक लंगोटी पहने बाबा ध्यान मुद्रा में बैठा है । उसके चारो तरफ धुनि जल रही है और खुसबू उसी में से आ रही है । चरवाहो ने सोचा की कोई बड़ा साधू है और वे श्रद्धा वश वंही बैठ । थोड़ी देर बाद बाबा ने आँखे खोली और सब पर जल छिड़कता हुआ मन्त्र बुदबुदाने लगा । बाबा ने जल की कुछ बुँदे सामने बने ताजाबने कुण्ड में रखी टुकड़े की हुई लकडियो पर डाला । जल पड़ते ही कुण्ड की लकडियो में आग लग गई । चरवाहों ने जब यह दृश्य देखा तो वे बाबा को कोई सिद्ध पुरुष समझ के उसके कदमो में लोट गए । चरवाहों ने बाबा से पूछा की आप कौन हैं ?
बाबा ने उत्तर दिया की वह अब से पहले हिमालय की गुफाओ में तपस्या कर रहा था और कल ही यंहा आया है ,लोगो की मन की मुरादे पूरी करने के लिए ही वह अपनी तपस्या छोड़ के आया है ”

चरवाहे बाबा की जय जयकार करने लगे और तुरंत अपनी गाय से दूध दुह के बाबा को भेंट कर दिया । बाबा ने दूध पीते हुए कहा की पास वाले मजार पर भी एक पंहुचा हुआ औलिया आया है जा के उसके भी दर्शन कर लो । जाते वक्त चरवाहों ने श्रद्धा वश एक दो रुपया बाबा को चढ़ा दिया ।

बाबा की बात सुन के सब चरवाहे मजार पर पहुच गए , उन्होंने देखा की एक हरे कपड़ो में बाबा बैठ है जिसके सामने रखे एक कटोरे में लोबान जल रही है । लोबान से मनमोहक सुगंध आ रही है । फ़क़ीर ने भी चरवाहों को देखा तो अपने पास पड़े लौटे से पानी की अंजलि भरी और लोबान वाले कटोरे में कुछ बड़बड़ाते हुए छिड़क दिया । लोबान की आग बुझने की वजाय और भड़क गई । चरवाहों का आस्चर्य का ठिकाना न रहा उन्हें फ़कीर के पैर छूते हुए परिचय पूछा । फ़कीर ने बताया की वह शिरडी से सीधा यंहा आया है और लोगो के ऊपर से जिन्न ,भूत प्रेत आदि की बाधा दूर कर के उन्हें धन दौलत से मालामाल कर देता है।
बस फिर क्या था फ़कीर के लिए भी तुरंत दूध का इंतेजाम हो गया और चरवाहों ने एक रूपये दो रूपये अपनी समर्थता के अनुसार फ़क़ीर के चरणों में रखते गए ।

अगली सुबह पास के गाँव के दर्जनों लोग बाबा और फ़कीर के दर्शनों के लिए पहुच चुके थे , सब अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार फल,मिठाइयां और कुछ दान दक्षिणा दे रहे थे ।
एक सप्ताह भी नहीं बीता ही दसियों गाँवो के लोग बाबा के मंदिर और फ़कीर के माजर पर मत्था टेक चुके थे । हिन्दू लोग मंदिर में भजन कीर्तन करते तो मुस्लिम लोग मजार पर चादर चढ़ा के और कब्बाली गाते । बड़ी संख्या में लोग मंदिर और बाबा की सेवा में लगे रहते ।
इधर मुस्लिम लोग मजार और फ़कीर की सेवादारी नहीं करते थकते ।

कुछ ही महीनो में मंदिर और मज़ार शहर तक प्रसिद्ध हो गए , बड़ी बड़ी गाडियो में लोग बाबा और फ़कीर के दर्शन करने आते और मन्नते मांगते। खूब चढ़ाव आने लगा मंदिर और मजार में , प्रशासन को जब पता चला तो उसने वंहा बिजली का इंतेजाम करवा दिया मंदिर और मजार तक जाने के लिए पक्की रोड बन गई थी । बस अड्डे और रेलवे स्टेशन से सवारी ढोने वाले वहां सीधा मंदिर और मजार तक जाने लगे । जंहादिन में भी लोग जाने से कतराते थे अब उस वीरान मंदिर मजार के आस पास बड़ी संख्या में तरह तरह के समान की दुकाने खुल गई थी । हर दुकान से बाबा और फ़कीर का कमीशन बंधा हुआ था ।
पुरुष ही नहीं अब स्त्रियां भी बाबा और फ़कीर की सेवा में लग गई थीं , बाबा के पास हिन्दू औरतो की लाइन लगती जो सौतन से छुटकारा, पति काउनके प्रति अप्रेम, बच्चा होने जैसी समस्याओ का निबटारा चाहती थी। तो दूसरी तरह मुस्लिम औरते भी यही समस्याएं लेके फ़क़ीर के पास आती।
बाबा और फ़कीर ने दान चढावे, दुकान का कमिशन आदि का हिसाब किताब रखने के लिए तीन तीन मुनीम रख लिए थे । पचास साल के बाबा फ़कीर अब 30-35 साल के जवान लगने लगे थे ।
दिन ब दिन मंदिर और मज़ार के भक्तो की संख्या बढ़ती जा रही थी , एक दो कंस्ट्रक्शन कंपनिया अब मंदिर और मज़ार के आस पास की जमीनों पर फलैट बना के बेचने का विचार कर रहे थे और इसके लिए बाबा और फ़कीर को मोटी रकम कमीशन के तौर पर अड्वान्स दे दी गई थी तथा तीन तीन फ्लेट्स मुफ़्त देने का वादा अलग से।

– केशव

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?