क्षणिकायें…
क्षणिकायें…
1-मुझे छेड़ो
मैं साज हूँ
सुनो एकांत में
मैं तुम्हारे ही
दिल की आवाज हूँ
2-मन रोज लिखता है अपनी आत्म कथा
लिख लिख कर
मिटाना चाहता हैं अपनी कहानी से वह
अपना दर्द अपनी व्यथा
3- बंदगी
एक दूसरे की कविताओं को
पढ़ते हुऐ
बीत रही है जिंदगी
तुम कहती हो इसे
सिलसिला ए मुहब्बत
मैं कहता हूँ इसे
तेरी बंदगी
4- नज़र
तेरी मुस्कराहट को देखूं
या
तेरे गेसूओं को
तेरी नशीली आँखों से
नजर हटती ही नहीं है
5- खुश्बू…
मन ने
पहले की तेरी आरजू
फिर शुरू हुई तेरी जुस्तजू
तू कही न कही
इस जहाँ में है जरूर
तभी तो
मेरे आसपास है तेरी खुश्बू
6- सपना…
किसे कहूँ मैं अपना
लोग ही कह देते हैं
यह जीवन है एक सपना
किशोर कुमार खोरेन्द्र
अच्छी क्षणिकाएं !
thank u