बेहतर कल हूँ मैं…
माँ की कोख में
अनगिनत सपने संजोय हुए
दुनियाँ के घृणित सोच से बेखबर
जब पता चलता है ,,
जन्म से पहले ही कफन की तैयारी …..
सच मानिए, घृणित हो जाता है मन
देख कर इस जगत की शर्मसारी …….
गर आ गई इस बेदर्द दुनियां में भूल से
चढ़ जाऊँगी सूली ,फिर कोई दहेज लोभियों के
देख दुनियां की बेरहम सोच
चित्कारता है सर्वस्व मेरा …..
हाय रे विधाता….
धरती पर फैला यह कैसा
नौटंकी का डेरा ……….
बेबस और लाचारी की
अनगिनत निष्ठुरता …
देख कर यह दारूण दृश्य और
सिमटती मानवता ……
अवाक हूँ,विचलित हूँ भयभीत हूँ
इन सबके वावजूद मैं एक
बेहतर कल हूँ …..!!!
संगीता सिंह “भावना”
वाह वाह ! बहुत सुन्दर भाव !!
बहुत अच्छी कविता , बेटी पैदा होने से ही हम भारतीओं को कुछ हो जाता है , किओं ? इस सवाल का जवाब किसी के पास है नहीं .