धरती माँ अब तो दया कर
धरती माँ अब तो दया कर
अब ना ला ऐसे भुचाल
बर्वाद हो गया है माता
भारत और नेपाल
क्या गर्भ में छुपा है माँ
क्या राज है दिल में भारी
ममतामयी सहनशील माँ
क्यों बन गयी विनाशकारी
न जाने कब क्या होगा
ये सोंचके हैं बेहाल
हमारा रक्षक हिमालय आज
क्यों बन गया है काल
माँ बच्चों से बिछड़ गयी
बच्चें बिछड़ गये माँ से
अपने ममतामयी दिल में
इतना तु कहर लाई कहाँ से
शमशान भरे पड़े हैं आज
इंसान की लाशों से
तु भी एकबार देख ले माँ
अपनी ममतामयी आँखों से
देखकर ये भयानक मंजर
पत्थर दिल भी हो जायेगा छलनी
कैसे क्या और लिखूं मैं माँ
जार-जार रो रही है लेखनी
तु ही ऐसी बन गयी तो
कहाँ जाऊँ संसार से परे
भूल हुई है तो माफ कर दे माँ
बचा ले हमें हम बालक तेरे
___दीपिका कुमारी दीप्ति
सभी लोगों की भावनाओं को दर्शाती कविता है , प्राथ्नाओं के सिवा कुछ रहा ही नहीं .
हम सबकी भावनाओं की अभिव्यक्ति है यह कविता !