कवितापद्य साहित्य

धरती माँ अब तो दया कर

धरती माँ अब तो दया कर
अब ना ला ऐसे भुचाल
बर्वाद हो गया है माता
भारत और नेपाल

क्या गर्भ में छुपा है माँ
क्या राज है दिल में भारी
ममतामयी सहनशील माँ
क्यों बन गयी विनाशकारी

न जाने कब क्या होगा
ये सोंचके हैं बेहाल
हमारा रक्षक हिमालय आज
क्यों बन गया है काल

माँ बच्चों से बिछड़ गयी
बच्चें बिछड़ गये माँ से
अपने ममतामयी दिल में
इतना तु कहर लाई कहाँ से

शमशान भरे पड़े हैं आज
इंसान की लाशों से
तु भी एकबार देख ले माँ
अपनी ममतामयी आँखों से

देखकर ये भयानक मंजर
पत्थर दिल भी हो जायेगा छलनी
कैसे क्या और लिखूं मैं माँ
जार-जार रो रही है लेखनी

तु ही ऐसी बन गयी तो
कहाँ जाऊँ संसार से परे
भूल हुई है तो माफ कर दे माँ
बचा ले हमें हम बालक तेरे

___दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “धरती माँ अब तो दया कर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सभी लोगों की भावनाओं को दर्शाती कविता है , प्राथ्नाओं के सिवा कुछ रहा ही नहीं .

  • विजय कुमार सिंघल

    हम सबकी भावनाओं की अभिव्यक्ति है यह कविता !

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