कविता

जीवात्मा

आज फिर घर के आँगन में

खिला हैं फूल तेरा चेहरा

‘गुलाब’ खिल उठा हैं मन

महकने लगा ये तन

आया हैं याद तेरा वादा आज ही मिलने का

जो हैं सूचक मेरे ज़िंदा होने का

सोचती हूँ “भेंट” तुम्हे क्या दू

निहारती हूँ गुलाब

भर लेती हूँ मुट्ठी

चल पड़ती हूँ तुमसे मिलने की राह में

वही मौरश्री के आलिंगन में

अम्बुआ की छाँव की जन्नत

लो फिर टूट गया तेरा वादा

श्याम तुम नही यंहा

आँख पर रोई नही हैं ।

क्यूंकि खोल दी मुट्ठी

बिखर गई हैं ख़ुशबू

महक रही हैं चहु ओर गगन में

चारों दिशायें कर रही हैं उदघोष

तुम्हारे आगमन का

जीवात्मा

जाओ सृष्टि का श्रंगार बनो

चन्द्रकान्ता सिवाल ‘चंद्रेश’

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित