हिन्दी भाषा प्रेम की, सबको प्रेम सिखाय। सब भावों के राग की, ये ही है पर्याय।। शब्दों का निज कोष है, वाणी का मधुगान। हिन्दी बोलो प्रेम से, हिन्दी बड़ी महान।। सखा भाव सी मैत्री, रखती सबके साथ। बड़े प्रेम से थामती, सब भाषा का हाथ। समझे सबकी बात को, करती सबका मान। हिन्दी भाषा […]
Author: चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'
ग़ज़ल
तेरी ज़ुल्फ में पेचोख़म है। और खूब बात में दम है। क्यों और सताती हो अब, पहले दु:ख दिल में कम है? दूर रहो इससे तुम, शायद थैले में बम है। आ जाए लड़ ले मुझसे, जिसके बाज़ू में दम है। है आज कोई दिल ऐसा, कोई न जिसमें ग़म है? हैं सब घमन्ड के […]
अधूरा इश्क़
अधूरा इश्क़ एक लंबे इंतज़ार के बाद, फिर से वही इंतज़ार का आलम… ना ख़्वाब ही पूरे हुए ना नींद ही मुक्कमल हुयी, दिल तड़पता हर आह में फिर भी होता है पूरा -पूरा ये अधूरा इश्क़… ये अधूरा इश्क़ अधूरा इश्क़ देता तूफान में ताकत अंधेरे में एक रोशनी पुंज पृथ्वी के एक छौर […]
ग़ज़ल
लय अगर है तो क्या बहर न हुई। तुम न आए तो क्या सहर न हुई।। ऊँची लहरें क्या सिर्फ़ लहरें हैं। एक नन्ही लहर लहर न हुई ? क्या ज़हर को ही बस ज़हर मानें, तल्ख़ जो है ज़बाँ, ज़हर न हुई ? सो के गर उट्ठा कोई बारह बजे, क्या सहर है ये, […]
कविता : माँ को पयाम
मैं ख्याल की धरती पर माँ को पयाम लिखती हूँ अता की जो तुमने ये दुनिया मुझे सिर को झुकाकर तेरा आवाहन करती हूँ कहते हैं माँ हो तो कद्र होती है , तुम होती तो मेरी भी कद्र होती मेरे लिए भी कोई आँख तो रोती अब तो अपने ही आंसू से, तेरे नाम […]
गीत : वनपाखी
मन उड़ता था वनपाखी बनकर हवा, पेड़, फूल – पत्तों से, बातें करता था जमकर रोज सवेरे उठकर माँ से कहता था हंसकर तू भी तो उड़ वनपाखी बनकर … मन उड़ता था वनपाखी बनकर चूल्हे -चौके की अनबन में, करती हो क्यूं झगड़ा दिनभर छौड़ सभी की चिंता, माँ तू जी ले तू भी […]
वर्ण पिरामिड
रे बंसी बजाई हरजाई सगरी सुध बिसराई झट- पट गोपिन आई ************* वो तेरी छुअन मोहे मन प्रेम अगन जगे है सजन आओ मधुसूदन ************* रे मन पगले परदेसी दूर बसे है । तड़पत यूं है । जल बिन मछली — चंद्रकांता सिवाल
मुक्तक
गर कुछ माँगा है आपसे हमने हुज़ूर तो ये नही कि आप दे सकते हैं हुज़ूर चाहते हैं आपसे ही है हर शय मुमकिन, हम आपसे कुछ आपसे ही ले सकते है हुज़ूर प्यार तुमसे हुआ है, क्या वाकिफ़ नहीं हो तुम दिल बेकरार हुआ है, क्या वाकिफ़ नहीं हो तुम नींद नही आंखों में, […]
कविता
वक्त के संग उड़ती जा रही हूँ ग़मों पे अब मैं हँसती जा रही हूँ छू लूँ आकाश, आरज़ू है ये, मैं उसी ओर बढ़ती जा रही हूँ । दिल उमंगों से है भरा मेरा , हर तरफ़ रंग भरती जा रही हूँ। नाचता है मयूर मन मेरा, संग सरगम के बहती जा रही हूँ । चाँद […]
गजल
साँस अटकी है, कसक बाकी है और जीने की ललक बाकी है गो नवाबी चली गई कब की चाल में उनकी ठसक बाकी है राहगीरों ने कुचल डाला भले फूल में फिर भी महक बाकी है बेटे तो कब का साथ छोड़ गए बूढ़ी आँखों में चमक बाकी है कितना समझाया बुज़ुर्गों ने उसे […]