गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

लय अगर है तो क्या बहर न हुई।
तुम न आए तो क्या सहर न हुई।।

ऊँची लहरें क्या सिर्फ़ लहरें हैं।
एक नन्ही लहर लहर न हुई ?

क्या ज़हर को ही बस ज़हर मानें,
तल्ख़ जो है ज़बाँ, ज़हर न हुई ?

सो के गर उट्ठा कोई बारह बजे,
क्या सहर है ये, दोपहर न हुई।

भटकनों में अज़ल से है इन्सान,
आज तक भी कहीं ठहर न हुई।

पैसे वाले तो पा गए नदियाँ,
निर्धनों को तो इक नहर न हुई।

गाँव में जा के रो रहा डॉक्टर,
हाय पोस्टिंग किसी शहर न हुई।

लम्बी बहरों में क्यों लिखे ‘चन्द्रेश’
मुख़्तसर बहर क्या बहर न हुई।

— चन्द्रकांता सिवाल “चन्द्रेश”

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित