कविता

कविता

वक्त के संग उड़ती जा रही हूँ
ग़मों पे अब मैं हँसती जा रही हूँ
छू लूँ आकाश, आरज़ू है ये,
मैं उसी ओर बढ़ती जा रही हूँ ।
दिल उमंगों से है भरा मेरा ,
हर तरफ़ रंग भरती जा रही हूँ।
नाचता है मयूर मन मेरा,
संग सरगम के बहती जा रही हूँ ।
चाँद छुप जाए या ढले सूरज ,
इक दिये सी मैं जलती जा रही हूँ ।
अब बिखरने का क्या डर ‘चन्द्रेश’
रेत सी मैं फिसलती जा रही हूँ ।

— चन्द्रकान्ता सिवाल ‘चन्द्रेश’

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित