कहानी

अंधविश्वास

बहुत वर्षों की बात है हम रोज़ाना विटमोरीन्ज़ लाइब्रेरी में अखबार मैगज़ीन बगैरा पड़ने आते थे। दो घंटे हम पड़ते रहते औए बातें भी करते रहते। बहुत दफा ऊंची ऊंची बोलने लगते और लाइब्रेरियन गोरी ऐलसी कभी कभी हमारे टेबल पर आ जाती और हमें चुप कर जाने का संकेत देती। हम चुप कर जाते लेकिन कुछ देर बाद फिर बोलने लगते। यह गोरी विचारी बहुत अच्छी थी और रिटायर होने वाली थी। रिटायरमेंट के आख़री दिन वोह हमारे टेबल पर आई और बोली ” मिस्टर सिंह आज मेरा आख़री दिन है ,जी भर कर बोल लो ” हम सभी हंस पड़े और ऐलसी को रिटायरमेंट की शुभ कामनाएं दीं। एलसी ने हमें एक एक चॉकलेट दिया।
फिर हम अखबार पड़ने लगे और आदत के मुताबक फिर बातें करने लगे।

उस दिन एक नया शख्स भी आया हुआ था। अक्सर हम किसी खबर को ले कर चर्चा किया करते थे और इस दौरान कभी कभी बहस भी हो जाती थी ,बस यही था हमारा ऊंची ऊंची बोलने का कारण। बात चलते चलते बाबा , पीरों फकीरों की इश्तिहार बाज़ी पर आ गई क्योंकि सभी अखबार इन लोगों की ऐड से भरे हुए थे। कहीं कश्मीर का मशहूर ज्योतिषी, कहीं पीर दरबार ,कहीं बाबा जी ठीकरी वाले , कहीं साईं महाराज का चमत्कार , कहीं चौवीस घंटे आप का कष्ट दूर करने वाले बाबा , और भी बहुत सा बकवास। इन लोगों की बातों पर चर्चा होने लगी। सोहन सिंह बोला ,” यार ! आदमी तो बहुत कम इन लोगों पर विशवास करते हैं लेकिन यह औरतें ही हैं जिन का बेड़ा बैठा हुआ है। पता नहीं किस मट्टी की बनी हुई हैं , पति को रोटी मिले न मिले बस बाबा जी को खीर खिलाती हैं “. सभी हंस पड़े।

मैंने भी तलहन वाले बाबे की बात सुनाई जो मैंने खूब मिर्च मसाला लगा कर सुनाई और सभी हँसते रहे। ऐलसी भी हमारी तरफ देख कर मुस्कराती रही। फिर मैंने एक ऋषि जी महाराज की बात सुनाई जिस के पखंड मैंने बहुत नज़दीक से देखे थे और क्योंकि वोह ऋषि हमारे एक ऐसे रिश्तेदार के घर आया हुआ था जिस के अंधविश्वास के खिलाफ हम एक शब्द भी बोल नहीं सकते थे। यह ऋषि अब बूढ़ा हो गिया है लेकिन अभी भी इस का विगियापन अखबारों में होता है और यह पाखंडी मेरा खियाल है मल्टी मिलियनेअर होगा लेकिन लोग जाते हैं।

जब मैं बोल चुक्का तो वोह नया शख्स बोलने लगा , बोला ” भाई साहब , आप ने तो बातें ही की हैं लेकिन मैं इन पाखण्डिओं से बहुत नुक्सान करा चुका हूँ और मेरा घर भी बड़ी मुश्किल से टूटने से बचा है। मेरी पत्नी बहुत वैहमी हुआ करती थी। बात बात पर वहम करती और इन लोगों पर धन बर्बाद करती। मुझे कहती तुम नास्तक हो ,धर्म कर्म पर विशवास नहीं करते। मेरी सख्त ओवर टाइम की कमाई इन लोगों पर बर्बाद करती। घर में रोज़ झगड़ा होता। एक दफा मेरे दस साल के बेटे की एक आँख बंद होने लगी , बार बार उसे ऊँगली से खोलनी पड़ती और कुछ देर बाद फिर बंद हो जाती। डाक्टरों की दवाई से कोई फायदा नहीं हो रहा था।

मेरी पत्नी एक दिन एक महात्मा को मिलने चले गई जो इंडिया से आया हुआ था और एक मंदिर में डेरा जमाया हुआ था। उस को मिलने के लिए लोगों की बहुत भीड़ थी। महात्मा ने भरोसा दिया और कहा ,” इंडिया में एक मंदर बन रहा है , आप बेटे को ले कर इंडिया जाइए और अपने हाथों से दान कीजिये, उन लोगों को बता देना कि मैंने भेजा है ,भगवान की कृपा से सब ठीक हो जाएगा” घर में बहुत लड़ाई झगडे के बाद हम बेटे को ले कर इंडिया जा पुहंचे। वहां हमारा दस हज़ार पाउंड खर्च हो गिया। हमारी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा जब बेटे की आँख बिलकुल ठीक हो गई। मुझे अपने आप पर अफसोस होने लगा कि मेरी वाइफ सही थी ,मैं ही गलत था।

ख़ुशी ख़ुशी यात्रा करके जब हम इंग्लैण्ड वापिस पुहंचे तो कुछ दिनों बाद बेटे की आँख फिर बंद हो गई और हमारी पति पत्नी की इतनी लड़ाई हुई कि हमारी बोल चाल बंद हो गई। एक दिन मैं टीवी पर फ़ूड एलर्जी के बारे में डॉक्यूमेंट्री देख रहा था तो मैंने अपनी बेटी से पुछा ,बेटा ! तेरा भैया कौन सी चीज़ ज़्यादा खाता है तो वोह बोली डैडी यह रोज़ स्ट्रॉबरी जाम खाता है। मैंने बेटी को कहा कि इस का स्ट्रॉबरी जाम बंद कर दो। जब स्टॉबरी जाम बंद किया तो एक हफ्ते बाद बेटे की आँख बिलकुल ठीक हो गई। पत्नी ने अपनी भूल स्वीकार कर ली और हमेशा के लिए इन बाबा लोगों को अलविदा कह दिया। हमें याद आया कि जब इंडिया में बेटा ठीक हुआ था तो स्ट्रॉबरी जाम ना मिलने की वजह से ठीक हुआ था ”

इस शख्स की बात सुन कर हम सब हैरान हो गए। अब ऐलसी भी आ गई थी और हमें टेबल खाली करने के लिए कह दिया क्योंकि लाइब्रेरी बंद होने का वक्त हो रहा था। हम ने ऐलसी को रिटायरमेंट की फिर मुबारकवाद दी और लाएब्रेरी से बाहर आ गए।

— गुरमेल सिंह भमरा

 

3 thoughts on “अंधविश्वास

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन भाई , धन्यवाद . दरअसल मैंने इन पाखंडी वर्ग को बहुत नज़दीक से देखा है ,यह लोग धर्म के नाम पर कलंक हैं . मुझे तो देख देख कर दुःख इस बात से होता है कि हम भारती किस मट्टी के बने हुए हैं जो blind faith में इतने नीचे जा चुक्के हैं कि कोई भी अन्पड बाबा इन लोगों को मुर्ख बना लेता है .

    • Man Mohan Kumar Arya

      मेरी दृस्टि में इसका कारण वेदो का अप्रचार, पौराणिक मिथ्या संस्कार और सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना है। हार्दिक धन्यवाद।

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। कहानी अच्छी लगी। शिक्षाप्रद है। मनुष्यों को पाखंडियों के जाल में फंसने से बचना चाहिए। पाखंडियों के लिए ऋषि शब्द का प्रयोग होना दुःख और हैरानी की बात है। यह ऐसा ही है जैसे किसी पाखंडी को वैज्ञानिक या डॉक्टर या महापुरुष कह दिया जाये। ऋषि शब्द उन लोगो के प्रयोग होता है जिन्होंने वेदाध्ययन किया होता है और कड़ी साधना कर ईश्वर का अपनी आत्मा में साक्ष्तार किया हुआ होता है। यह भी क्षमा पूर्वक कहना चाहता हूँ कि पाखंडियों के पाखण्ड से बचना अच्छी बात है परन्तु वेदों के सत्य धर्म को भूलकर उसका उपहास व उसे न मानना भी मूर्खता है जिसका परिणाम जीवन में दुःख के रूप में ही मिलता है। सादर धन्यवाद।

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