मुक्तक/दोहा

मुक्तक

गर कुछ माँगा है आपसे हमने हुज़ूर
तो ये नही कि आप दे सकते हैं हुज़ूर
चाहते हैं आपसे ही है हर शय मुमकिन,
हम आपसे कुछ आपसे ही ले सकते है हुज़ूर

प्यार तुमसे हुआ है, क्या वाकिफ़ नहीं हो तुम
दिल बेकरार हुआ है, क्या वाकिफ़ नहीं हो तुम
नींद नही आंखों में, रातों को भी चैन नहीं है
हमको यार हुआ है, क्या वाकिफ़ नहीं हो तुम

आज बैठी हूँ तुम्हारें पहलू में मैं पल दो पल
भूलकर सब मुहब्बत अब कर लूँ मैं पल दो पल
लम्हे फुरसत के मिले हैं चंद ही सुनो साहिब
जी भरके तुम्हें ही बस देखूं मैं पल दो पल

मनुष्य हो अगर जान लो तुम कर्म भी अपना
जीना यूं ही नहीं तुमको है काम भी मरना
सीप के मोती बनो तुम या बहती जल धारा
गुजरकर व्यवधानों से पात्र को है पात्र ही भरना

चन्द्र कांता सिवाल ‘चन्द्रेश’

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित

One thought on “मुक्तक

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    गर कुछ माँगा है आपसे हमने “हुज़ूर”

    तो ये नही की आप दे सकते है “हुज़ूर ”

    चाहते है आपसे ही है हर शय मुमकिन ,

    हम आपसे कुछ आपसे ही ले सकते है “हुज़ूर ”

    प्यार तुमसे हुआ है ,क्या वाकिफ़ नही हो तुम

    दिल बेकरार हुआ है ,क्या वाकिफ़ नही हो तुम

    नींद नही आंखों में ,रातों को भी चैन नही है

    क्या हमको ये यार हुआ है ,वाकिफ़ नही हो==== तुमआदरणीया सुंदर भाव समांत पदांत पर थोडा प्रयास शेष है जय माँ शारदे=

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