गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

है ज़िंदगी का फलसफ़ा, ज़रा सा मुस्कुराइये
बनेगा दर्द भी दवा, ज़रा सा मुस्कुराइये

विगत को क्यों गले लगा, बिसूरते हैं रात दिन
बिसार के जो हो चुका, ज़रा सा मुस्कुराइये

न कोई श्रम न दाम है, ये मुफ्त का इनाम है
जो रहना चाहें चिर युवा, ज़रा सा मुस्कुराइये

भुलाके रब की रहमतें, क्यों झेलते हैं ज़हमतें
रहम की माँगकर दुआ, ज़रा सा मुस्कुराइये

हिलाएँगे जो होंठ तो, खिलेगा चेहरा भोर सा
कटेगा दिन हरा-भरा, ज़रा सा मुस्कुराइये

विकल्प तो अनेक हैं, अगर खुशी अज़ीज़ हो
तो मान लें मेरा कहा, ज़रा सा मुस्कुराइये

जो शेष ज़िंदगी के दिन, जिएँगे हँस के “कल्पना”
ये करके खुद से वायदा, ज़रा सा मुस्कुराइये

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]