गीतिका/ग़ज़ल

वतन को जान हम जानें

वतन को जान हम जानें, हमारी जाँ वतन में हो। जुड़ा है जन्म से नाता, जनम भर मन नमन में हो। कुटिल सैय्याद जब भी बनें, विधाता भव्य भारत के। बदल दे तख्त ज़ुल्मों का, वो जज़्बा जोश जन में हो। करम ऐसे न हों अपने, शरम से नैन झुक जाएँ। हया के अश्क हों […]

कहानी

वापसी टिकट

गाड़ी जैसे ही प्लेटफोर्म पर रुकी, विचारों के जाल में उलझे मनोज ने तेज़ी से अपना बैग उठाकर कंधे पर टांगा और हाथ में एक पीले रंग की कपड़े की पोटली में बंधा हुआ मृत पिता का अस्थि-कलश सावधानी पूर्वक उठाकर तेज़ी से कदम बढ़ाए. उसके साथ उसका हम उमर ममेरा भाई भानु भी था. […]

गीतिका/ग़ज़ल

फूल हमेशा बगिया में ही

फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते। नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते। बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी गोद भरे तो माँ के राजदुलारे लगते। हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता महके-महके, गलियाँ औ’ चौबारे लगते। दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू ओस कणों के संग सुखद, भिनसारे लगते। फूल, […]

गीतिका/ग़ज़ल

भोर का तारा छिपा जाने किधर है

आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है। रक्त में डूबी हुई होती खबर है। फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर रात पूनम पर अमावस की मुहर है। ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको भोर का तारा छिपा जाने किधर है। डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है। खो […]

गीतिका/ग़ज़ल

कनहल के फूल

फूलों के मौसम में फिर फिर, आ जाते कनहल के फूल। रंग-रंग में नई उमंगें, भर लाते कनहल के फूल। धूप-पसीने से लथपथ हो, जब जीवन बोझिल होता शीत-छाँव बन सुरभि स्नेह की, फैलाते कनहल के फूल। इन फूलों से शोभित होती, घर घर पूजा की थाली प्रभु चरणों की शोभा बनकर, इतराते कनहल के […]

गीतिका/ग़ज़ल

बसंत आया है

डाल-डाल पर गुल खिले, बसंत आया है। पात-पात हँसकर कहे, बसंत आया है। चारु चंद्र की चाँदनी, विहार को उतरी। स्वर्ग लोक भू पर दिखे, बसंत आया है। सुर के साथ ठंडी हवा, फिज़ाओं में बिखरी। तार-तार मन का गुने, बसंत आया है। बाग-बीच कलिकाओं से, किलोल भँवरों की। फूल-फूल तितली उड़े, बसंत आया है। […]

गीतिका/ग़ज़ल

नेताजी कुछ कहो

हर दिन दूने रात चौगुने, भूख-प्यास के दाम हुए। नेताजी! कुछ कहो तुम्हारे, नारे क्यों नाकाम हुए। तिल-तिल दर्द बढ़ाकर जन का, जन से मरहम माँग रहे तने हुए थे कल खजूर बन, कैसे नमते आम हुए। रंग बदलते देख तुम्हें अब, होते हैं हम दंग नहीं चल पैदल गलियों में आए, क्यों भिक्षुक हे […]

गीतिका/ग़ज़ल

फूल कहता है

डाल से मुझको न तोड़ो, फूल कहता है। उँगलियों से यूँ न मसलो, फूल कहता है। देख मुझको क्यारियों में, बाल खुश कितने! प्रेम से फुलवारी सींचो, फूल कहता है। बाँधकर जूड़े में हरते, प्राण क्यों मेरे? छेदकर मत हार गूँथो, फूल कहता है। रौंदते हो पग तले, निर्दय हो क्यों इतने? यूँ प्रदूषण मत […]

कहानी

जवाब दीजिये

मई माह की जानलेवा गर्मी की प्रभात वेला में मुरुड़ बीच (महाराष्ट्र) पर स्थित होटल “डिवाइन होम स्टे” के अंदरूनी विशाल द्वार पर खड़ा आशीष अपने क़दमों में लोटते अनंत सागर की अथाह गहराई में खोया हुआ था कि अचानक उसकी मौन साधना को भंग करती हुई क़दमों की आहट उसके निकट ही आकर ठहर […]

गीतिका/ग़ज़ल

नूतन साल आया

पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया। जाग रे इंसान, नूतन साल आया। ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ थम गए तूफान, नूतन साल आया। गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया। कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। मन ये तेरा अब किसी […]