क्षणिकायें…
1-क्या तुम….
क्या तुम मृगतृष्णा हो या माया हो
या
आईने के भीतर की
कभी न पकड़ आनेवाली छाया हो
2-खलिश…..
जाते जाते
छोड़ जाते हो
सीने में खलिश
तब
घेर लेता है मुझे
इश्क़ का आतिश
(खलिश =चुभन ,आतिश =अग्नि )
3-लब…
होता होगा
कुछ तो मतलब
जिसे कह नहीं पाये
आज तक तेरे लब
4-हिलमिल…
तेरी कविता और मेरे काव्य के दिल
एक दूसरे से गये हैं हिलमिल
5-रात..
बीच में ये आती है क्यों रात
तुमसे
हो नहीं पाती है मुलाकात
किशोर कुमार खोरेन्द्र