कविता

माँ का आँचल

सौभाग्यशाली है दुनिया में
जिसे माँ का आँचल मिला है
संकटमोचन देवी मिली
खुशियों का सब फूल खिला है

दुनिया में कोई दिल नहीं है
दे सके जो माँ का प्यार
सफलता की मिन्नतें करती माँ
भगवान की वह है अवतार

जीवन का सौभाग्य समझती
एक नारी जब बनती है माँ
वह बच्चा ही पूंजी होता है
वही होता जीवन जहां

हर भारतीय बच्चा भी यहाँ
प्रथम वचन माँ-माँ बोले
हर खुशी या कष्ट में मूँह से
अनायास माँ ही शब्द निकले

त्याग की मूर्ति होती माँ
वट वृक्ष बन देती चैन
जरा मलिनता देख मुख पर
बिता देती पलकों में रैन

उम्र बिकने की चीज होती
खुशियों की होती दुकान
माँ उसे जरुर खरिदती
चाहे किम्मत होती जान

कुबेर का खजाना एक ओर
साथ स्वर्ग की खुशियाँ सारी
दुसरी ओर माँ का आँचल तौलें
माँ का आँचल ही होगा भारी

एक अर्ज है इस आँचल को
कभी न गंदा करना
इतना ही तुम भी प्यार देकर
माँ के आँचल तल रहना

___दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “माँ का आँचल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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