मज़दूर दिवस
०१ मई २०१५ , ‘मज़दूर दिवस’ पर सभी ईमानदार मेहनतकश इंसानों को समर्पित—
मज़दूर दिवस,
कब यह वक़्त बदलेगा-
कब मज़दूर का चेहरा, कोई हँसता हुआ देखेगा,
पर यह वक़्त वक़्त क्यों इसे, हर बार सताता है,
क्यों मज़दूर का हँसता चेहरा, इसे नहीं भाता है,
उसकी चार पल की खुशी इससे देखी नहीं जाती,
पल ही पल में चेहरे पर गम का बादल घिर आता है.
शांत मन से उठता है सुबह सुबह यह मज़दूर ,
घर के खोखले हाल देख फिर अशांत हो जाता है,
मन ही मन एक असहाय सा-
जीव बन कर रह जाता है,
फिर भी मज़बूरी के आलम में-
अपनी दिनचर्या करता है आरम्भ
दिन भर के काम सोच सोच कर –
जैसे फूलने लगता है उसका दम।
पानी बिजली का बिल, कहीं राशन की लाइन,
कंही बच्चो के स्कूल की फीस,कापी ,किताब,
कैसे कैसे ज़रूरी काम. आज करने है तमाम
और उस पर नियम से काम धंधे पे जाना,
जीने के लिए मेहनत से कमाना –
बस इसी में उलझ कर रह जाता है मज़दूर –
खुशियों से कितना अनजान और कितना दूर,,
और फिर सोचता है– कब यह वक़्त बदलेगा-
कब ख़ुशी के बादल छायेंगें,
और सब मेहनत कश इंसान भी –
जीवन में सुख पायेंगें
— जय प्रकाश भाटिया
मजदूरों की स्थिति पर कविता अच्छी है.