एक मुट्ठी बीडी
मानू और छानू दोनों बचपन के मित्र हैं | लेकिन दोनों की सोंच और विचारधाराओं में जमीन-आसमान का अंतर है | मानू हर बात को गंभीरता से सकारात्मक रूप में लेता है तो छानू नकारात्मक व लापरवाह है | मानू हर कदम पर अच्छाई को देखता-परखता है वहीँ छानू हर चीज में बुराई देखता है अच्छाई उसे नजर ही नहीं आती है | जिससे मानू लोगों में प्रिय है तथा छानू खडूस है फिर भी दोनों में गहरी मित्रता है | लगभग दोनों साथ ही रहते हैं पर एक दूसरे में कभी कोई तकरार या अड़चन नहीं होती है | अपनी-अपनी सोंच को गले लगाकर दोनों विपरीत परिस्थिति में भी दोस्ती का निर्वाह करते हुए अपना जीवन जीते हैं, जो शायद एक कठिन काम है | एक दिन की बात है दोनों बाजार जाते हैं और एक-एक मुट्ठी बीडी-माचिस खरीदते हैं | अपने-अपने बण्डल को हथेली में रगड़ कर मनपसंद बीडी निकालकर कस लेते हुए एक किनारे खड़े हों जाते हैं | मानू एक बीडी पीकर छानू से कहता है चलों अब देर हों रही है तो छानू कहता है यार मजा नहीं आया मुझे दूसरी बीडी पीनी पड़ेगी यह कहते हुए वह बण्डल से दूसरी बीडी निकाल कर पीता हैं और खिन्नता के साथ घर को चल देता है | दों दिन बाद दोनों फिर उसी दुकान पर बीडी खरीदने के लिए आते है | छानू खराब बीडी की शिकायत करते हुए दुकानदार से उलझ जाता है और खरी-खोटी सुना डालता है | दुकानदार अवाक् होकर मानू से पूछता है क्या तुम्हारा बण्डल भी खराब था तो मानू कहता है नहीं भाई मेरी वाली तो ठीक है पर छानू हमेशा खराब बीडी की फ़रियाद करता है |
दुकानदार और छानू की झकझकी सुनकर एक सज्जन भी उसमे सामिल हों जाते हैं जो उसी दुकान पर कुछ सामान लेने के लिए आये हुए होते है | अरे भाई आपस में तकरार मत करों, दूकानदार तो माल बेचता है बनाता तो है नहीं | यह सुनकर छानू और भी आग-बबूला हों जाता है तथा उस सज्जन की बिनमांगी सलाह पर उनसे भीड़ जाता है | आप क्या जानों, बीडी मेरी खराब निकली और आप बेवजह वकालत कर रहें हों | देखा जाय तो छानू का गुस्सा जायज है पर वें सज्जन भी कम नहीं थे | छानू से मुखातिब हों कहते है अरे भाई इसमे नाराजगी कैसी, बात तुम्हारी सही होगी पर एक बात बताओं, बण्डल में सारी की सारी बीडी खराब तो हों नहीं सकती, एकाध बीडी खराब हों सकती है इसमे इतनी नाराजगी कैसी | झगडा निपटाने के लिए दुकानदार छानू को दूसरा बण्डल थमाकर कहता है इसे पीकर बताओं क्या यह भी खराब है | छानू उसमे से एक बीडी पीकर कहता है लों यह बीडी भी खराब है जब दुकान में माल ही खराब रखोगे तो अच्छी कहा से होगी | उसका जबाब सुनकर दुकानदार मानू से उसी बण्डल में से बीडी पीकर बताने को कहता है तो मानू कहता है मेरी तो ठीक है और सब हंस पड़ते है |
दूकानदार विजयी मुद्रा में अब आप ही बताओं मेरा क्या दोष है इस पर वे सज्जन मानू से पूछते हैं कि तुम बण्डल में से पहले कौन सी बीडी निकलते हों अच्छी वाली या खराब वाली तो मानू कहता है मै तो अच्छी वाली ही निकाल कर पीता हूँ | फिर छानू से पूछते है कि तुम बताओं, तो छानू कहता है मै तो पहले खराब वाली निकालता हूँ ताकि बाद में अच्छी-अच्छी बीडी पी सकूँ | सज्जन फिर छानू से पूछते है कि क्या तुम्हें बाद में अच्छी वाली बीडी मिलती भी है | तब वह कहता हैं कि बीडी का बण्डल ही खराब हों तो अच्छी बीडी कहा से मिलेगी | तो वे सज्जन उपदेश की भाषा में कहते हैं यही बात तो समझने की हैं बण्डल की हर बीडी तुम खराब समझ कर पिए जा रहें हों और कहते हों की सारी की सारी बीडी खराब है | जब की मानू अपने बण्डल से अच्छी बीडी ढूढकर पीता है और हर बार वह अच्छी बीडी ही ढूढता है फिर अंत में भी उसे अच्छी ही बीडी मिलती है | जब कि तुम्हें हर बार खराब बीडी मिलती है कारण तुम्हारी सोंच ही खराब बीडी निकालने की है तो अच्छी कहाँ से मिलेगी इसी लिए तुम्हें अच्छी बीडी नहीं मिलती तुम भी अपनी सोंच से अच्छी बीडी निकालों तो तुम्हें भी अच्छी ही मिलेगी | शायद यह बात छानू के समझ में कुछ-कुछ आ रही थी उसने कुछ भी जबाब नहीं दिया और धीरे से उठकर चला गया | शायद उसने तय कर लिया कि अब वह भी पहले अच्छी बीडी निकाल कर पियेगा | उसके बाद छानू के खराब कभी बीडी की शिकायत दूर हों जाती है | कुछ दिन बाद दुकानदार मजाक के नियत से पूछ बैठता है कि क्या अब भी बीडी में शिकायत है तो छानू मुस्कुरा कर कहता है कि गलती मेरी सोंच में थी बीडी में नहीं | मैंने अपनी सोंच बदल ली है बीडी और दुकानदार तो वही है |
महातम मिश्र
बहुत अच्छी कहानी. जैसी हमारी मानसिकता होती है, वैसी ही वस्तु हमें मिलती है.
आजकल छानू जैसी मानसिकता वाले व्यक्ति बहुत हैं.
सादर धन्यवाद विजय कुमार सिंघल जी, कहानी ने आप को सन्देश दिया और आप को अच्छी लगी