फिर भी हिंदुस्तान है आजाद
आज भी नहीं सुधरे हैं आम जनता के हालात
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद
घुम रहे हैं सड़कों पर नवयुवक बेरोजगार
भूखे रो रहा देश का भावि कर्णधार
उड़ सकते हैं वे भी नहीं कोई पंख लगानेवाला
मंजील तो पता है नहीं कोई राह दिखानेवाला
अज्ञानता के भंवर में डूबा है समाज
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद
आज भी नहीं मिलती नारी को पूरी शिक्षा
कबतक देती रहेगी वह अग्निपरीक्षा
हर कदम पर खड़ा है रावण और दुःशासन
कब खत्म होगा महिलाओं का ये शोषण
इससे तो अच्छा था अंग्रेजों का राज
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद
देश का रत्न किसान खिलाता है हमें मेवा
खूद सुखी रोटी खाकर करता धरती माँ की सेवा
उनके हालात में न हुआ है कोई सुधार
कब अपनापन की निंद से जागेगी सरकार
मिलकर लाना होगा हमें देश में आगाज
फिर शान से कहेंगे हिंदुस्तान है आजाद
___दीपिका कुमारी दीप्ति
हार्दिक धन्यवाद सर !
आपने देश और समाज की बिडंबनाओं को सही रूप में व्यक्त किया है !