कविता

फिर भी हिंदुस्तान है आजाद

आज भी नहीं सुधरे हैं आम जनता के हालात
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद

घुम रहे हैं सड़कों पर नवयुवक बेरोजगार
भूखे रो रहा देश का भावि कर्णधार
उड़ सकते हैं वे भी नहीं कोई पंख लगानेवाला
मंजील तो पता है नहीं कोई राह दिखानेवाला
अज्ञानता के भंवर में डूबा है समाज
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद

आज भी नहीं मिलती नारी को पूरी शिक्षा
कबतक देती रहेगी वह अग्निपरीक्षा
हर कदम पर खड़ा है रावण और दुःशासन
कब खत्म होगा महिलाओं का ये शोषण
इससे तो अच्छा था अंग्रेजों का राज
फिर भी कहते हैं हिंदुस्तान है आजाद

देश का रत्न किसान खिलाता है हमें मेवा
खूद सुखी रोटी खाकर करता धरती माँ की सेवा
उनके हालात में न हुआ है कोई सुधार
कब अपनापन की निंद से जागेगी सरकार
मिलकर लाना होगा हमें देश में आगाज
फिर शान से कहेंगे हिंदुस्तान है आजाद

___दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “फिर भी हिंदुस्तान है आजाद

  • दीपिका कुमारी दीप्ति

    हार्दिक धन्यवाद सर !

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने देश और समाज की बिडंबनाओं को सही रूप में व्यक्त किया है !

Comments are closed.