गरीबी
गरीबी मनुष्य के जीवन में एक मिट्टी की मूर्ति के समान स्थायीत्व और चुपचाप सबकुछ देखकर सहने के लिए मजबूर करती है शायद उसकी यही मजबूरी उसके जिन्दगी के सफर में एक कोढ़ पैदा कर देती है।ईश्वर भी अजीबोग़रीब मनुष्य को बना दिया है किसी को ऐसा बनाया है कि वो खाते -खाते मर जता है कोई खाये बिना मर जाता है वास्तव में जब कोई गरीबी की मार झेलता है। न जाने उसे कैसी -कैसी यातनाएँ झेलनी पड़ती होगी।उसके उपर क्या गुजरती होगी।वो अच्छा कार्य करने के पश्चात् भी किसी के सामने उसमें कहने की हिम्मत नहीं होती उसके अन्दर बहुत सी बातें आती है लेकिन समाज ने ऐसा उसे एक दर्जा प्रदान कर दिया है वो उसी के दायरे में रहकर अपने हर काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है।इतना ही नहीं इन गरीबों के प्रति सरकार भी अव्यवहार करती है इनके लिए अलग वर्ग बाट कर रख दी है।गरीबों के लिए गरीब भोजन गरीबों के लिये गरीब आवास गरीबों के लिए ट्रेनों में गरीब ट्रेन (समान्य बोगी) बना दी गई।उस ट्रेन में एक तरफ लोगों को बैठने के लिये जगह नहीं मिलता है दूसरी तरफ़ लोग आराम से पैर फैला कर मिठे सपने बुनते सफर करते हैं।एक तरफ लोगों की समस्या के वजह से हालत खराब हो रही है दूसरी तरफ सपनों की नदी में तैरते हुए आनंद के साथ सफर कर रहे हैं।जिन्दगी का सफर दोनों काट रहे हैं एक तरफ कष्टकारक है तो एक तरफ दुखदायक है।क्या ईश्वर की लिला है जिन्होंने मनुष्य को बनाते समय अपने पर भी गर्व किया होगा कि मैं भी एक अच्छे इनसानों को बनाया है। लेकिन वो बनाते समय यह नही सोचे होगें कि ये लोग इतना बड़ा हैवानियत को अपने अन्दर पाल लेगे।
फिर लौटते है उस गरीब की तरफ जो एक दाना के लिए किसी चौराहे पर सुबह से साम तक पेट की छुदा को शान्त करने के लिए एक मनुष्य ही मनुष्य के चेहरे को एक टक देखते रहता है उसकी याचना भरी आखों के सामने कई तरह के चेहरे साम तक नजर आते है। फिर भी उसके पेट की भुख समाप्त नहीं हो पाती है। और उसी रास्ते के बगल में आसमान रूपी छत के नीचे अपनी निंद को पुरा करना चाहता है पर भुख के मारे उसकी निंद पुरा नही होती है और स्वास्थ्य खराब हो जाता है उसके जिन्दगी का सफर पुरा नही हो पाती है ।उस गरीब की रह जाते हैं अधुरे सपने रह जाते हैं अधूरे ख्वाब और रह जाती हैअधूरी जिन्दगी।
गरीबों का कोई अस्तित्व है मुझे नहीं लगता ऐसा इनका कोई अस्तित्व नहीं है आज के समय में,हाँ इनका एक अस्तित्व है जब किसी को इनकी जरूरत पड़ती है तो चले आत हैं इनका शोषण करने के लिए और अपना स्वार्थ सिद्धि पुरा कर लेते हैं। शायद यही एक गरीब का हाल होता है। आज के समय में एक गरीब होना सबसे बड़ा गुनाह है। हे ईश्वर सबको सबकुछ देना लेकिन गरीबी मत देना।
—————–@रमेश कुमार सिंह
—————–२३-०४-२०१५
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सम्मानित रमेश कुमार सिंह जी, बहुत ही सार्थक विषय पर आपने अपने विचार व्यक्त किये है एक गरीब का जीवन इन्शानियत के लिए एक आइना है जिसमे वह सब कुछ देखना चाहें तो देख सकता है पर दुर्भाग्य है कि हर पटल पर गरीब को ही गरीब किया जा रहा है…….
अच्छा लेख !
आभार!!!
रामेश जी , लेख अच्छा है . आप सही हैं गरीबी जैसी बुरी बात इस दुनीआं में है ही नहीं . इस का इलाज तो है लेकिन कोई करना नहीं चाहता . बस सब बेतहाशा दौड़ रहे हैं , किसी के पास किसी की तकलीफ जान्ने का वक्त ही नहीं . आज एक खबर पड़ी कि ८३ साल का एक रिख्षा चालक बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पेट भर रहा था और बुढापा पेंशन पिछले शे महीने से ना मिलने के कारण बैंक के चक्कर लगा लगा कर इतना परेशान हुआ कि उस ने अपने ऊपर पैट्रोल डाल कर आग लगा ली . समझ नहीं आती ऐसे लोगों के अछे दिन कब आएँगे .
सादर धन्यवाद श्रीमान जी यही तो बात है कि गरीबी का मारा हुआ व्यक्ति अपने जिन्दगी को चलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता है इनके प्रति पुरे समाज को सोच और नजरिया बदलनी पड़ेगी।