मुक्तक/दोहा

मुक्तक

11208794_896468757083882_90621379_nरातों को चाँद सितारों से कहते हम अपने अफसाने

पलकों की ठंडी सेजों पर जो स्वप्न सजाये अनजाने

होंठों से बाहर आ न सकी छिप गईं हृदय के कोने में

तेरे मेरे मन की बातें या तो मैं जानूं या तू जाने

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

3 thoughts on “मुक्तक

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    अतीव सुंदर सृजन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छा लगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा मुक्तक !

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