मुझे मिल गयी..
मुझे मिल गयी तेरी रफ़ाक़त अच्छा है
मुझे मिल गयी तेरी मुहब्बत अच्छा है
मुझे भी सभी लोग बुतपरस्त समझ लेते
करने लगा हूँ अब मैं तेरी इबादत अच्छा है
पूछ कर कोई किसी से इश्क़ करता नहीं है
पर मिल गयी मुझे तेरी इज़ाज़त अच्छा है
जल कर एक दिन मुझे भी राख होना ही है
अभी हुस्न को इश्क़ की है जरुरत अच्छा है
मेरी उल्फत को तूने अभी जाना ही नहीं है
मांग लो मुझसे और और मोहलत अच्छा है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
{रफ़ाक़त =मैत्री ,बुतपरस्त =मूर्ति पूजक ,इबादत =उपासना,मोहलत =निश्चित समय }
आपने अच्छी ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है. भाव बहुत अच्छे हैं. लेकिन ग़ज़ल के नियमों का पूरी तरह पालन नहीं हुआ. सभी पंक्तियाँ समान लम्बाई की होनी चाहिए.
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी , ख़ास कर जो आप लफ़्ज़ों के अर्थ लिख देते हैं इस से मज़ा डबल हो जाता है.