अब भी हिन्दू ना जागा, तो बचेगा हिन्दू नाम नहीं !!!
मैं भी आग लगा सकता हूँ… पाकिस्तानी बस्ती में
मैं भी कालिख मल सकता हूँ नेताओं की हस्ती में
जो गद्दार छुपे बैठे है, सबको नंगा करवा सकता हूँ
ग़र मैं जिद पर आ जाऊं तो दंगा करवा सकता हूँ
फिर में सोचा करता हूँ कि, कोसने वाले काफ़ी हैं
हम आर्यपुत्र हैं भारत के, जो सबको देते माफ़ी हैं
हम ज्ञानपुंज दुनियाँ भर को सदियों से देते आये हैं
कृपण दुष्ट उन्मादी भी अब सन्मुख शीश झुकाए हैं
दो धारी तलवारों से, खुद सिर अपने कट जाते हैं
दुष्टों के पोषक देश स्वयं, दुष्टों से ही मिट जाते हैं
मुझको इतना पता है कि, ये आज़ादी नहीं जाएगी
जो सोच मात्र उन्मादी है, खुद के बच्चे भी खाएगी
सांप को जो भी पालेगा, विष का ग्रास हो जाएगा
विनाश चाहने वाले का भी.. स्वयं नाश हो जायेगा
ये बातें अच्छी हैं लेकिन, सुधरेगा इनसे ढीठ नहीं
अपनी सुरक्षा को निर्भर भगवान् पे होना ठीक नहीं
अब स्वयं खड्ग लेना होगा हम भारत के आर्यों को
अब हमें पूरा करना होगा श्री रामचन्द्र के कार्यों को
रामायण ये कहती है कि भय बिन प्रीत नहीं होती
कितनी भी करे चेष्टा,बिन शस्त्र के जीत नहीं होती
कोई युद्ध चाहता है,.. तो इसके लिए तैयार हैं हम
शान्ति की बातें छोड़ो, शत्रु के लिए तलवार है हम
मिलजुल कर रहना अच्छा है पर सहना क्या मजबूरी है
कोई सोच हत्यारी है, तो सबक सिखाना जरूरी है
पहले खुद का घर देखो, फिर दुनिया की बात करो
ये समय नहीं फिर आएगा, जागो, दो दो हाथ करो
सदियों से होते हम पर अत्याचारों में विराम नहीं
अपने ही देश में खुलकर कह सकते हम राम नहीं
अब भी हिन्दू ना जागा, तो बचेगा हिन्दू नाम नहीं
अब भी हिन्दू ना जागा, तो बचेगा हिन्दू नाम नहीं
__ अभिवृत अक्षांश
बहुत अच्छी प्रेरक कविता. यह सत्य है कि हिन्दुओं को संगठित होकर देशद्रोहियों का विनाश करना होगा, वर्ना हम स्वयं नष्ट हो जायेंगे.