गीत/नवगीत

गीत

इक तीर  जिगर के  पार  गया,

दिल जीत गया, दिल हार गया,

हर काम  से मन नाचार  गया।

इक तीर जिगर के पार गया…..

 

इक इश्क की बाज़ी  हार आए,

इज़हार   गया,   इंकार   गया,

जो   वक्त  गया  बेकार  गया।

इक तीर जिगर के पार गया…..

 

जो  बीत  गयी,  वो  बात गयी,

हर  वजह  गयी,  तकरार गया,

जो  याद  रहा  वो  मार  गया।

इक तीर जिगर के पार गया…..

 

इस  वक्त  कि  अंधी ठोकर  में,

दीवार   गयी,   हर  यार  गया,

जीवन  का  सब व्यापार गया।

इक तीर जिगर के पार गया…..

 

दौलत  की   बहती  नदिया  में,

तहजीब  गयी,   व्यवहार  गया,

हर   रिश्ते   का  आधार  गया।

इक तीर जिगर के पार गया…..

 

जब  वक्ते-आखिरत  आ  जाये,

हर  दुआ  गयी,  उपचार गाया,

ऐ ‘होश’,  ज़बर,  लाचार  गया।

इक तीर जिगर के पार गया…

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “गीत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

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