दोहों में पर्यावरण
बिगड़ते पर्यावरण पर, उठ रहे हैं सवाल।
मानव की खुदगर्जी से, कुदरत है बेहाल।। १
औद्योगिकरण क्रांति से, होय जग में विनाश।
गंगा माँ मैली हुई, क्या यही है विकास? २
सावन अब बरसे नहीं, तपे नहीं है जेठ।
किसानी त्रासदियाँ बन, भरे नहीं है पेट।। ३
औद्योगिक अवशिष्ट बह, नदियां होय खराब।
हुआ है जल जहरीला, जीना हुआ हराम।। ४
जल का प्रदूषण न कर, जल है मूल्यवान।
जल प्रबंधन सही कर, जल जीवन की जान।। ५
जंगलों के कटने से, मिलता न वर्षा लाभ।
सूखा, महामारी को, भोगे है इंसान।। ६
पर्यावरण विष से भरा, जग में हाहाकार।
करे कुदरत का दोहन, खुद नर जिम्मेदार।। ७
होता कांक्रीटीकरण, हरियाली है खोय।
आबादी की बढ़त से, खुशहाली है रोय।। ८
पर्यावरण खराबी से, सूरज उगले आग।
तड़पें जल, थल, नभ जीव, बिना मेघ के प्यास।। ९
जंगलों को बर्बाद कर, बन रहें हैं मकान।
कुदरत की पड़ती मार, आते हैं तूफ़ान।। १०
कुछ तकनीकी कमियों के बाद भी दोहे प्रभावशाली हैं.
दोहों में शिल्प अभी काफी समय मांग रहा आदरणीया……