ग़ज़ल
ज़िन्दगी में नित नये अब राग गुंजाने लगे
नित नये रंगों में नूतन स्वप्न हर्षाने लगे
भर दुपहरी कूजती कोयल फुदकती डाल पर
ज़िन्दगी को गुलमुहर के फूल अब भाने लगे
खिलखिला कर हँस रहे हैं लाल-लाल अँगार से
हर धड़कते हृदय को ये शीत पहुँचाने लगे
जेठ की तपती दुपहरी में ये कैसे झूमते,
कष्ट हँसकर के सहो ये सहज समझाने लगे
अरुण पुष्पों से लदी हर शाख है इतरा रही
चार -दिन की ज़िन्दगी जी लो ये समझाने लगे
राजशाही गुल मुहर के फूल जब खिलते यहाँ
अपनी ही धुन में अनोखा राग सब गाने लगे
कवि हृदय ने प्रेम वश अनमोल मोती रच दिये
मन में यादों के हजारों पुष्प मुस्काने लगे
— लता यादव
बहुत शानदार ग़ज़ल !
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.