कविता

“धरती पुत्र”

हल नित कहें किसान से, हलधर मेरे मित्र

धरती को मै चिरता, अरु धरा बिखेरे इत्र ||

कलम कहें कविराय से, मुझे लगाओ हाथ

ज्ञानपिपासु शब्द तुम, रहों श्रृष्टि के साथ ||

हल और कलम समान हैं, दोनों रखते धार

श्रृजन हमारें अंग हैं, बस कृपा करें करतार ||

हम तुम दोनों दो पथिक, अलग-अलग अंजान

मिल जाएं गर संग-संग, नवांकुर हों धन-धान ||

मै अछूत अनपढ़ रहा, लिए अलग पहचान

तुम स्याही संग रचे-पचे, पढ़ें-लिखे विद्वान ||

कहाँ हमारा मेल-जोल, कैसे हों मित्र-मिताई

जाति-पाति का भेद-भाव, कैसे हों चित्र-सगाई ||

मै धूल-धूसरित गोबर हूँ, तुम हों आच्छादित अम्बर

मै उर्बर करता जीवन पथ, तुम रचते हों आडम्बर ||

मेरा वजूद निर्भर रहता, तुम लगते हों भाग्यविधाता

तुम अलंकार अभिव्यक्ति हों, हम जड़-जाहिल कल्पाता ||

दोनों का रूप चिरंतन   हैं, दोनों से विकसित श्रृजनथाल

मिल जाएं गर साथ साथ, हों जाए रजकण भी निहाल ||

ना देर लगे सूखी नदियाँ, दूधों की सरिता बह जाए

फिर सोन चिरैया का दर्शन, भारती धरा पर हों जाए ||

आओं पहचानें हम हम कों, हम एक एक से एक गुनी

इतिहासी पन्नों में फिर से, अंकित हों जाए ऋषि-मुनी ||

हम कृषि पुत्र हम ऋषि पुत्र,हम वेदों के सहपाठी हैं

हम जगत गुरू हम शिवसागर, हम श्रृष्टिशिला परिपाटी हैं ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

6 thoughts on ““धरती पुत्र”

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी .

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद गुरमेल सिंह जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !!

    • महातम मिश्र

      बहुत बहुत धन्यवाद श्री विजय कुमार सिंघल जी

    • महातम मिश्र

      हार्दिक धन्यवाद मित्र रमेश कुमार सिंह जी

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