मेरी माँ …
आ जाती है वो
अक्सर मुझसे मिलने
मेरे ख्वाबों में
और लुटा जाती है
अपना असीम स्नेह
सुन जाती है मेरी
अनकही परेशानियाँ
जो दबी होती हैं दिल के
किसी कोने में
और झट से हल्का हो जाता है
मेरे इस भावुक दिल का बोझ
जीवन मरण के चक्कर से परे
निभा जाती है वो अपना फर्ज
और हर ले जाती है मेरा हर मर्ज
सुबह होती है जब
खुलती हैं आँख, न पाकर तुझे
एक पल को हो जाती हूँ बेचैन
पर फिर कहीं दिल के उस कोने से
फूटता है एक मीठा सा खुशी का
फव्वारा .. जो भिगो देता है
अपने स्नेह से मेरे मन को
और खुशनसीबी का होता है
“अलौकिक सा अहसास”
तुम पास नहीं होकर भी
मेरे कितने पास हो “माँ ”
यही क्या कम है “ओ मेरी माँ “……
लोग भले ही चले जाते हैं पर अपनों के लिए कभी नहीं जाते …
~Thank you Maa 🙂 ~
वाह आदरणीया , माँ वाकई जीवन मरण के चक्कर से ऊपर होती है नमन आपको
Thank you sir ji
बहुत अच्छी कविता ! माता का स्थान संसार में सबसे ऊंचा है.
धन्यवाद आदरणीय
सही बात है , माँ तो माँ ही होती है , मुझे भी बहुत याद आती है.
धन्यवाद आदरणीय भमरा जी