ईश्वर सृष्टि का रचयिता, पालक, संहारक, जीवों को कर्मफल प्रदाता और वेदज्ञान का दाता है: आचार्य उमेशचन्द कुलश्रेष्ठ
वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून का अर्धवार्षिक उत्सन का चैथा दिवस
आज 9 मई, 2015 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के चैथे दिन प्रातः 5:00 बजे से योगाभ्यास का प्रशिक्षण साधको को स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती द्वारा दिया गया। इसके पश्चात प्रातः 6:30 बजे से सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जो लगभग 2 घंटे चला। इसके बाद मथुरा से पधारे प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री उदयवीर सिंह आर्य के भक्ति गीत हुए। पहले गीत के प्रारम्भिक कुछ शब्द थे ‘एक बाग लगाया है, प्रभु परमेश्वर ने संसार रचाया है। दिन रात बनायें हैं चाद और सूरज के दो दीप जलाये हैं।। नदियों में पानी है, पल पल पल चलता है यह प्रभु की निशानी है। सागर इठलाता है लहर-लहर सबको संगीत सुनाता है।।’ दूसरा भजन था ‘‘जब प्यार हुआ परमेश्वर से धन धाम का जाना भूल गया, जब प्यास लगी प्रभु दर्शन की अपना बेगाना भूल गया।।” तथा तीसरा भजन था ‘‘कहीं अन्धेरा कहीं उजाला तेरा है हर काम निराला, सबको रचकर सबको पाला तू ही है सबका रखवाला।” भजनों से पूर्व यज्ञ करते हुए स्वामी जी ने धर्मप्रेमियों को कहा कि जब मन ईश्वर में न लग रहा हो तो उस समय भजन गा लेने से मन को शान्ति प्राप्त होती है। भजन के शब्दों से मन आकर्षित व प्रभावित होता है। परमात्मा की स्तुति भी करनी चाहिये, इससे भी हमारा मन प्रभु से मिलने के लिए तैयार हो जाता है। स्वामीजी ने कहा कि जिसकी हम स्तुति सुनते हैं, उससे मिलने का हमारा मन करता है। परमात्मा की प्राप्ति साधना से ही होती है। उन्होंने कहा कि ईश्वर सब जगह मौजूद है पर नजर आता नहीं, योग साधन के बिना कोई उसे पाता नहीं। मनुष्यों को निष्काम कर्म करने चाहिये, इससे पुनर्जन्म नहीं होता। स्वामी जी ने आगे कहा कि हमें निष्काम कर्म करना चाहिये तथा अहंकार नहीं करना चाहिये। सामवेद के एक मन्त्र में परमात्मा से की गई प्रार्थना कि हमारे पास शुद्ध व पवित्र धन आये, की ओर स्वामी जी ने श्रोताओं का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि शुद्ध कर्मों से कमाया पवित्र धन ही परिवार को सुखी रखता है। वैदिक विद्वान स्वामीजी ने कहा कि धर्म पूर्वक कमाया गया धन ही साधना व यज्ञ आदि हमारे कार्यों को सफल सिद्ध कर हमें लाभदायक होता है। दान सभी मनुष्यों को करना चाहिये, इससे धन शुद्ध होता है। उन्होंने यह भी कहा कि हरयाणा में वैदिक विद्या के प्रचार के लिए गुरूकुल इसलिए अधिक संख्या में हैं क्योंकि वहां दान की प्रवृत्ति है। स्वामी जी ने कहा कि बुद्धि केवल ज्ञान से ही शुद्ध होती है, अन्य किसी साधन से नहीं।
आज का मुख्य प्रवचन आगरा से पधारे वेदों के विद्वान आचार्य उमेश चन्द कुलश्रेष्ठ का हुआ। उन्होंने आश्रम द्वारा संचालित विद्यालय तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों को आश्रम में पधारे स्त्री व पुरूषों द्वारा प्रदत्त छात्र वृत्तियों व आर्थिक सहायकता की घोषणाओं की प्रशंसा की और धर्म प्रेमी श्रोताओं और आश्रम के अधिकारियों को धन्यवाद दिया। विद्वान वक्ता ने स्वाध्याय के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि स्वाध्याय के परिणाम से मनुष्य जीवन की उन्नति होती है। एक सत्य घटना सुनाते हुए उन्होंने कहा कि कि एक बार पंजाब के संस्कृत के एक प्रसिद्ध पौराणिक विद्वान घूमते हुए अलीगढ़ पधारे। यहां आकर उनकी तबियत बिगड़ गई। यहां एक आर्यसमाजी युवक से उनका परिचय हुआ। उसने छः सात दिन उनकी पूरे मनोयोग से सेवा की। स्वामीजी ठीक हो गये और प्रस्थान के लिए तैयार हुए। स्वामी जी के विदा लेते समय इस युवक ने स्वामीजी को भेंट में एक पुस्तक एक रेशमी वस्त्र में लपेट कर दी और निवेदन किया कि जब अवसर मिले तो कृपया इसे एक बार अवश्य पढ़े। स्वामीजी ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। आगे बढ़े, गर्मी थी। एक बरगद के वृक्ष के नीचे बैठ गये। याद आया कि युवक ने पुस्तक भेंट की है। वस्त्र को खोला और पुस्तक व लेखक का नाम पढ़ा। पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश थी और लेखक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे। स्वामीजी क्रोध में आ गये कि उस युवक ने एक नास्तिक की पुस्तक मुझे दे दी। पुस्तक को फेंक दिया। कुछ देर बाद क्रोध शान्त हुआ। युवक की सेवा व निवेदन याद आया तो सोचा की एक बार पढ़ने में हानि ही क्या है? उन्होंने पुस्तक को खोला और पढ़ना आरम्भ किया। पहले समुल्लास में ईश्वर के नामों की व्याख्या पढ़ी तो दंग रह गये। स्वामी दयानन्द जी की विद्वता का उन पर प्रभाव पड़ा। पूरी पुस्तक पढ़ डाली। सभी बातें शत प्रतिशत सत्य प्रतीत र्हुइं। अब वह इस रहस्य को समझ गये कि पौराणिक विद्वान अपने स्वार्थों के कारण स्वामी दयानन्द का विरोध करते हैं और उन्हें झूठ ही नास्तिक प्रचारित करते हैं। यह स्वामीजी आर्यजगत में स्वामी सर्वदानन्द सरस्वती के नाम से विख्यात हुए।
इन स्वामी सर्वदानन्द जी ने अलीगढ़ में एक साधुआश्रम की स्थापना की जहां संस्कृत का अध्ययन कराया जाता था। स्वामीजी के पास भोजन बनाने के लिए धुरिया नाम का एक पाचक था। यह बच्चों को संस्कृत पढ़ते हुए देखता था। इसके भी संस्कार जागे। इसने स्वामीजी से निवेदन किया कि क्या मैं भी अन्य बच्चों के साथ पढ़ सकता हूं। मैं अपना काम पढ़ाई करने से पहले ही समाप्त कर दिया करूगां। स्वामी जी ने प्रसन्न होकर आज्ञा दी। यह धुरिया पढ़कर धुरेन्द्र शास्त्री बन गया। विद्वानों से शास्त्रार्थ करता था। बाद में इन्होंने सन्यास ले लिया और स्वामी धुव्रानन्द सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए। योग्यता के बल पर यह सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली के प्रधान बने। यह स्वाध्याय की महिमा है। विद्वान वक्ता ने सभी धर्मप्रेमियों को नित्य स्वाध्याय करने की प्रेरणा दी।
प्रवचन का मुख्य विषय ईश्वर की सत्ता की सिद्धि, उसके कार्य एवं साक्षात्कार का था। विद्वान वक्ता ने ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के साथ ईश्वर के पांच मुख्य कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ईश्वर का पहला कार्य इस सृष्टि रचना है, दूसरा कार्य उसके द्वारा सृष्टि का संचालन है, तीसरा कार्य यथासमय सृष्टि की प्रलय करना, चैथा कार्य जीवों को कर्मानुसार जन्म व कर्मों के सुख व दुख रूपी फल देना तथा पांचवा कार्य सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान देना है। इन सभी कार्यों पर वक्ता ने अपने 48 मिनट के प्रवचन में विस्तार से सारगर्भित प्रकाश डाला जिससे लोग गद्गद् हो गये। व्याख्यान के अन्त में विद्वान आचार्य ने ईश्वर के प्रत्यक्ष होने पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ईश्वर सूक्ष्मातिसूक्ष्म है। वह आकाश से भी सूक्ष्म है। आंख तो क्या मन की भी पहुंच ईश्वर तक नहीं है। इस कारण ईश्वर को आंखों से नहीं देखा जा सकता। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से आप आंखों से मुझे नहीं अपितु मेरा शरीर देखते हैं और मेरे शरीर को देखकर ही मुझको जानते हैं इसी प्रकार से यह ब्रह्माण्ड ईश्वर का शरीर है। इस ब्रह्माण्ड रूपी शरीर को देखकर ही ईश्वर का साक्षात ज्ञान होता है। आचार्य उमेश जी ने इस विषय में अनेक प्रकार से अपनी बात को सिद्ध किया। आचार्य उमेश जी का यह भाषण यूट्यूब पर लिंक https://www.youtube.com/watch?v=-_oyoRSN0nA&feature=youtu.be पर देखा व सुना जा सकता है। आयोजन के अन्त में आश्रम के मन्त्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा एवं प्रधान श्री दर्शनलाल अग्निहोत्री जी ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित किया। स्वामी दिव्यानन्द जी ने यज्ञ के यज्ञमानों को आर्शीवाद की प्रक्रिया सम्पन्न की। शान्तिपाठ के साथ प्रातःकालीन सत्र का अवसान हुआ।
इसके पश्चात तपोवन आश्रम की आश्रम से साढ़े तीन किलोमीटर दूर पहाडि़यों में एक इकाई जों चारों ओर वनों से घिरी हैं, वहां जाकर सत्संग का आयोजन किया गया। सभी श्रोता व श्रद्धालु वहां पहुंचे। वहां भजन, उपदेश एवं ईश्वर का ध्यान का कार्यक्रम हुआ। वहां वृक्षों की छाया में बैठकर सत्संग किया जिसका अपना अलग ही अनुभव था। आरम्भ में तपोवन आश्रम के मन्त्री ई. श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने आश्रम की स्थापना का परिचय दिया। आश्रम के संस्थापक बावा गुरमुख सिंह जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। सूचना देते हुए उन्होंने बताया कि वहां प्रतिदिन यज्ञ किया जाता है। वर्ष में होली के अवसर पर एक बार कई दिनों का शिविर एवं गायत्री यज्ञ सम्पन्न किया जाता है जिसमें लगभग 1 लाख से अधिक गायत्री मन्त्रों से आहुतियां दी जाती है। यज्ञ को देहरादून की आध्यात्मिक हस्ती स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती सम्पन्न कराते हैं। यहां पहले श्री उम्मेद सिंह विशारद ने ‘भगवान आर्यों को ऐसी लगन लगा दे, वैदिक धर्म की खातिर मरना इन्हें सिखा दे’ हारमोनियम व ढोलक की ध्वनि पर सुनाया। श्रीमति नीलम, शामली ने ‘पहले जैसा भारत हो जाये ऐसा ऋषि ने सोचा था, क्या तुम ऐसा सोचते हो, जैसा ऋषि ने सोचा था।‘ भजन तन्मय होकर सुनाया जिसे बहुत पसन्द किया गया। श्री सुखबीर सिंह, पानीपत ने हरयाणवी भाषा में एक भक्ति गीत सुनाया। इसके पश्चात डा. विनोद कुमार शर्मा का प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि किसी भी कार्य को करने के लिए शरीर का स्वस्थ रहना आवश्यक है। शरीर एक रथ के समान है। हमारा यह रथ ठीक होना चाहिये। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और स्वस्थ मस्तिष्क निवास करते हैं। हमें स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना चाहिये जिससे हमें दवायें न लेनी पड़े। भोजन करने से पूर्व भोज्य पदार्थों के बारे में सोचें कि क्या यह हमारे स्वास्थ्य व प्रकृति के अनुकूल होगा। यदि न हो तो उस भोजन का त्याग कर दें। उन्होंने आश्यर्य व्यक्त करते हुए बताया कि आजकल उन वृद्ध व्यक्तियों को चावल व तले पदार्थ खाते हुए देखता हूं जिनके घुटनों में दर्द रहता है। ऐसे लोगों को लौकी की सब्जी और सूखी रोटी खानी चाहिये। उन्होंने कहा कि हम भोजन के मामले में फिसलते रहते हैं। हमारे घरों में फ्रिज होना घातक है। फ्रिज में रखी वस्तुएं खाने योग्य नहीं होती। फ्रिज की ठण्डी चीजें खाने से आपके घुटनों के पिस्टन जाम हो जायेंगे। ठण्डे पदार्थों के सेवन से अमाशय की अग्नि मन्द होकर भूख मर जाती है। ऐसे व्यक्ति देखने को नहीं मिलते जिनमें शारीरिक रोग या कोई विकृति न हों। उन्होंने बताया कि आहार पाचक तन्त्र पर प्रभाव डालता है। चीनी, नमक, तीखे पदार्थ तथा चाय आदि के सेवन से हारमोनों का सन्तुलन बिगड़ता है। इससे आंतों के रोग भी होते हैं। विद्वान वक्ता ने तपोवन आश्रम में 12 से 18 मई 2015 तक होने वाले नेचरोपैथी चिकित्सा शिविर की जानकारी भी दी। बहिन कुसुम भण्डारी, स्नेह चावला तथा सुषमा आर्या ने भी आयोजन में भजन गाये। दो भजन आर्यजगत के विख्यात गायक श्री रूहेल सिंह ने भी गाये। एक भजन के शब्द थे ‘याद तुझको माता की आती तो होगी, बातें उसकी मन में कभी आतीं हो होंगी।’ भजन की भूमिका पर भी उन्होंने प्रकाश डाला जिससे श्रोता द्रवित हो गये। डा. वीरपाल विद्यांलकार ने प्रवचन में लोगों को आश्रम के विद्यालय के बच्चों को आर्थिक सहायता प्रदान करने की अपील की। इसके बाद लोगों ने बड़ी संख्या धनराशियां दान दीं।
इसके बाद श्री उमेश चन्द कुलश्रेष्ठ जी ने प्रवचन करते हुए योग दर्शन का उदाहरण देकर कहा कि हमें अपने पिछले कर्मों के आधार पर आयु मिलती है। स्वस्थ मनुष्य की आयु बढ़ती है और अस्वस्थ मनुष्य की आयु घटती है। आयु का सम्बन्ध हमारे श्वांसों की संख्या पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ मनुष्य की श्वांसे कम खर्च होती जबकि अस्वस्थ मनुष्य की अधिक। अस्वस्थ मनुष्य स्वादिष्ट भोजन व मिष्ठान्न आदि पदार्थों का आनन्द नहीं ले सकता। वीर भोग्या वसुन्धरा का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि वीर मनुष्य ही संसार में सुख भोगते हैं। उन्होंने श्रोताओं को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य को बिगड़ने मत देना। आपने स्वास्थ्य के वैदिक नियम ऋत भुक, मित भुक और हित भुक का उल्लेख कर इनकी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि बीमारी का एक कारण परिश्रम न करना है। पाश्चात्य जीवन शैली के कारण ही रोगों में वृद्धि हुई है। कार्यक्रम के अन्त में स्वामी दिव्यानन्द जी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस स्थान पर हम बैठे हैं यहां बड़े बड़े योगियों व साधकों ने साधना की है। हमारे पूर्वज जप करते थे। उन्होंने कहा कि मन को निग्रह करने में अभ्यास व वैराग्य की साधना भी सम्मिलित है। मुखरित, उपांशु, मानस तथा अजपाजप की उन्होंने व्याख्या की और जप करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि परमात्मा मन की एकाग्रता को चाहता है। तपोवन आश्रम को उन्होंने साधना का स्थान बताया। उन्होंने कहा कि मन को एकाग्र करने का प्रयास करें। उन्होंने याद दिलाया कि इस स्थान पर प्रसिद्ध योगियों स्वामी योगेश्वरानन्द, महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती एवं प्रभु आश्रित जी महाराज ने तपस्यायें व ध्यान क्रिया का अभ्यास किया है। शान्ति पाठ के साथ आयोजन सम्पन्न हुआ। प्रसाद एवं भोजन की व्यवस्था आश्रम में ही की गई थी।
–मनमोहन कुमार आर्य
समारोह के चौथे दिन का समाचार पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. डा. विनोद कुमार शर्मा तथा श्री उमेश चन्द कुलश्रेष्ठ ने स्वास्थ्य के बारे में जो बातें कही हैं वे सत्य और बहुत उपयोगी हैं. उनका पालन करने वाला व्यक्ति कभी अस्वस्थ हो ही नहीं सकता.
समारोह की अन्य जानकारी पाकर भी संतोष हुआ. आपका बहुत बहुत आभार !
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। मैं अभी कार्यक्रम से ही लौटा हूँ। आज कार्यक्रम संपन्न हो गया।
बहुत अच्छा ! अंतिम दिन के समाचार की प्रतीक्षा है.
आदरणीय महोदय जी। वैदिक साधन आश्रम तपोवन के अंतिम दिन का समाचार युवासुघोष पर अपलोड कर दिया है। कृपया देखने की कृपा करें।