कविता

माँ मेरा यही है सपना

माँ मेरा बस यही है सपना
तेरे सपनों को पूरा कर दूं
तेरे ममतामय आँचल में
दुनिया की सारी खुशियाँ भर दूं

खाना लेके दौड़ती थी पीछे
आज मैं तुझे खिलाऊंगी
थपकियाँ दे मुझे सुलाया
तू सो आज मैं लोरी गाऊंगी

ऊंगली पकड़ चलना सिखाया
मेरे लिए आँखों में रैन गुजारा
जीवन की ऩईया डगमगाने लगी तो
मैं बनूंगी माँ तेरा तिनका सहारा

भगवान मेरी विनती आज सुन ले
मेरी माँ को तू चाँद की उमर दे
जीवन का हर सुख मिले उसे
चाहे बदले में मेरी खुशी कम कर दे

जीवन से ज्यादा चाहा मुझे
भगवान से भी तू है पहले
स्वर्ग का सुख छोड़ के माँ
रहना चाहूं तेरे आँचल तले

दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “माँ मेरा यही है सपना

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया ! माँ का कोई विकल्प नहीं.

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