चोरी का फल
गुरु नानक देव जी अपने दो शिष्यों के साथ भ्रमण पर निकले, जब बहुत देर हो गई चलते चलते, तब एक घने पेड़ की छाया में विश्राम करने के लिए रुक गए, दोनों शिष्यों का भी भूख प्यास से बुरा हाल था, गुरु जी ने अपने झोले से कुछ रसदार फल निकाले और शिष्यों को खाने के लिए दिए, फल इतने मीठे, रसदार और स्वादिष्ट थे की उन्हें खाते ही दोनों की भूख प्यास और थकान दूर हो गई, गुरु जी भी एक दो फल खा कर वहीँ विश्राम करने लगे और उनकी आँख लग गई, दोनों शिष्यों के मन में इतने स्वादिष्ट फलों का लोभ घर कर गया और उन्होंने गुरु जी के झोले से एक एक फल चुरा लिया और खाने लगे. पर यह क्या , फल तो ज़हर से भी कड़वे और रस हीन , दोनों शिष्य अपनी चोरी पर पछताने लगे। गुरु जी आँख खुली तो दोनों ने गुरूजी के चरण पकड़ लिए , माफ़ी मांगी.और सारी बात सच सच कह दी, गुरु जी ने मुस्कुरा कर कहा बच्चो, मेरी झोली में सब फल एक जैसे हैं, जब आपको भूख प्यास लगी थी, और आपको इनकी ज़रुरत थी तो यह फल मीठे ही लगने थे, पर बेज़रुरत लालच में की हुई चोरी का फल कभी मीठा नहीं हो सकता, दोनों शिष्यों ने गुरु नानक देव जी के उपदेश के आगे सर झुका दिया , कभी चोरी ना करने का प्रण किया. और गुरु जी के साथ अगले पड़ाव की और चल दिए।
— जय प्रकाश भाटिया
कथा बहुत अच्छी लगी . इस कथा को सभी समझ लें तो यह संसार अच्छा हो जाएगा .
बहुत अच्छी बोध कथा. आभार !