कविता : न पति देव, न पत्नी देवी
पत्नी एक इंसान है , उसे देवी मत बनाइये
पति भी हाड़-मांस का है, उसे देव न बनाइये |
इंसान है तो उसे इंसान ही रहने दीजिये
न उसे राक्षस, न दानव , न देव बनाइये |
देवी बनाकर पूजा नारी को, फिर किया छल
परदे के पीछे उसको, शोषण का शिकार न बनाइये |
पुत्र होना या पुत्री होना , इसका जिम्मेदार है पुरुष
दकियानूस बनकर,निर्दोष औरत को दोषी न बनाइये |
गर दोष नारी में है , दोष पुरुष में भी है
दोषारोपण में जीवन को नरक न बनाइये |
कोई नहीं पूर्ण इस जग में, नारी हो या पुरुष हो
पूर्णता के चक्कर में , जीवन को दुखी न बनाइये |
— कालीपद ‘प्रसाद’
बहुत अच्छी कविता , हमारे देश में औरत पर ही प्रैशर है . बेटा न पैदा करे तो भी औरत पर दोष , हालांकि बेटा या बेटी का होना पुर्ष की ही दें है .
अच्छी कविता !