कुछ दोहे — सभी माँओं को समर्पित
आँखों में मेरी बसा, माँ का सुंदर रूप
हमको देती थी खुशी, वो मेरे अनुरूप॥
राम कृष्ण ना जानती, मैं बस जानूँ मात
जिसने हमको है दिया, सुघर सलौना गात ॥
धरती से भारी बनी, गलती करती माफ
उसके मुखड़े पर दिखे, प्यारा ईश्वर साफ ॥
मेरे जीवन को दिया, जिसने नव आकार
उसके आँचल में हुए, सब सपने साकार ॥
आँगन बचपन का बसा, अब भी मेरी साँस
छोर पकड़ के चली थी, यादें हैं वो खास॥
— कल्पना मिश्रा बाजपेई
बहुत सुन्दर दोहे !