माँ की अभिलाषा
भारत मां के पूत पियारो
मां ये तुमसे कहती है
राक्षस करते तांडव मुझ पर
जिससे नस-नस दुखती है
भानु रश्मियां बिता यामिनी
नव जीवन को लाती हैं
तुम जगती आंखों में निद्रित
क्यों अनसुलझे रहते हो
जगे सपूतो और भी जागो
नव्य प्रभात को दर्शाओ
नर तन में छिपे असुरों को
हे सत मानव शीघ्र मिटाओ
— प्रदीप कुमार तिवारी
वाह !
dhanyawad