कृष्ण की बांसुरी के स्वर
सुबह सुबह बांसुरी बजाकर कृष्ण
पंछियों को जगा रहे हैं
गायों को जगा रहे हैं
पेड़ पौधे फूल बाग़ नदियाँ
कभी ना सोने वाले झरने भी
उनकी बांसुरी की धुन से मदमस्त से
हो गए हैं
अम्बर पर बादल मस्ती में बह रहे हैं
सागर के तट शांत हो गए हैं
धरती पर सूर्य देव के आगमन की तैयारियां हैं
तभी कूकती आई एक कोयल ने कहा
देखो सब जाग गए हैं
लेकिन एक मानव ही है जो ना कृष्ण की
बांसुरी को सुन पा रहा है
ना जाग पा रहा है
वो गहरी नींद में डूबता चला जा रहा है
कृष्ण की बांसुरी केवल आनंद का प्रतीक नहीं है
वो चेतावनी भी है और जागृति भी
उनके अधरों से लगे पाञ्चजन्य से क्रांति उद्घोषित होती है
किन्तु बांसुरी सहज ही तिमिर से घिरी
सुप्त चेतनाओं की जागृति
का स्वर सुनाती है
इसीलिए हे मानव तू भी जाग!
____सौरभ कुमार दुबे
वाह वाह ! बहुत खूब !!