लेख

क्या सच में वेद श्रुति हैं?

अधिकतर हिंदूवादी मानते हैं की वेद ‘ श्रुति ‘ हैं , श्रुति का अर्थ हुआ की जो सुनी गई हो । अर्थात कंठस्थ हो और सुनकर ही गुरु द्वारा शिष्य दर शिष्य उन्हें याद रखते हों ,और लिखा न जाए । इस बात की पुष्टि करने के लिए स्मृतियों का भी सहारा लिया गया है । मनुस्मृति में कहा गया है ” पितर, पितामह और प्रपितमाह आदित्यों को कहते हैं , यह श्रुति है और प्राचीनकाल से सुनते आये हैं ” ( मनु स्मृति , अध्याय 3, श्लोक 284)

पर हिंदूवादीयो की यह धारणा सही नहीं है , वेद श्रुति नहीं थे बल्कि वैदिक काल से ही वेद लिखे जाते थे लिखे जाते थे और ब्राह्मण द्वारा मिलावट कर के बेंचा भी जाता था ।
महाभारत में एक श्लोक आया है ” वेद् विक्रयिण्श्चैव वेदना दूषका: वेदांना लेखकाश्चैव ते वै निर्यगामिन” , इस श्लोक में न सिर्फ वेदों की लिखित प्रतियां तैयार करने वालो का जिक्र है बल्कि वेदों के पाठ में गड़बड़ी करने वाले का भी जिक्र है । यानि महाभारत काल में भी ब्राह्मण वेदों को लिखता था और उनमे मिलावट कर बेंचता था । यानि आज से हजारो साल पहले भी ब्राह्मण वेदों में हेर फेर कर के इसे बेंचता था ।

अत: यह कहना की वेद केवल सुने सुनाये जाते थे यह भ्रमक प्रचार के सिवा कुछ नहीं ।
हिंदूवादी वेदों को ‘ श्रुति’ कह के शायद अपनी इज्जत बचाना चाहते थे जो की बुद्ध द्वारा संगठित धर्म की स्थापना और विदेशियो के आने के कारण उनमे हीन भावना उत्पन्न हो गई थी। अपनी हीन भावना को दबाने के लिए जो की विदेशियो द्वारा अपने ग्रंथो के बारे थी की कुरान और ओल्ड बाइबिल में बदलाव नहीं हुआ है , हिंदूवादीयो ने वेदों को भी ‘ ओल्ड टेस्टामेंट’ बनाने की कोशिश की इसलिए वेदों को श्रुति कहना शुरू किया ।

वेदों में जबरजस्त परिवर्तन किया गया है , पातंजलि के अनुसार किसी समय में ऋग्वेद की 21 शाखाये थी जो आज लुप्त है , आज सिर्फ शाकल शाखा ही उपलब्द है और बाकी की लुप्त कर दी गई ।
ऋग्वेद में मंत्रो की संख्या 10472 कही गई है जबकि शौनक के अनुसार यह संख्या 10528 है , पर गौर करने लायक एक बात और है की ऋग्वेद के दसवे मंडल में मंत्रो की संख्या 15000 कही गई है । तब बाकी के 4528 मन्त्र कँहा है? , इन्हें क्यों गायब कर दिए गए ?क्या वे मन्त्र कुछ ऐसे प्रमाण थे जो हिंदूवादी लेखको के प्रचार के विपरीत बात कहते थे?

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?