शब्दों की सृष्टि में सृजनहार माँ
( मेरी माँ शान्ति देवी को समर्पित, जो ईश के संग मुझे दे रही आशीर्वाद )
हुई अनंत कृपा सरस्वती की
संवेदनाओं की लहरें बन बरसी
उर सागर की मसि ने
मन धरा के पृष्ठों पे
नीलगगन की कलम
‘ सदाबहार माँ ‘ को अंकित कर गई
उर के झरोखे से
माँ की व्यापकता की बयार
दिक् दिगंत में प्रतिध्वनित हो रहीं
ममता – वात्सल्य के आँचल का भूमण्डल बन
उतरी जग में ब्रह्माण्ड – सी
नौ माह खून को खून दे
सींचती सांसों से साँसें
ईश का प्रतिरूप – सी
सृजनहार -सी सृजन करती संतान
स्तनपान का अमृत पिला के
जीवन को जीवन रस -सी जीवन देती
प्रतिकूलताओं की बारिशों में
अनुकूलता का गोवर्धन बन
जीवन में सारे रंग भरती
हिमालय – सी दिन- रात प्रहरी बन
कुनजरों की बुरी बलाओं से
निदान के लिए नजर उतारती
दुःख की घड़ियों में
धड़कनों को धड़कनें बन
डगमगाते डगों को देती सहारा सदैव
माँ के बलिदानों की गाथा गाता इतिहास
माँ से हो जाए कितना भी मन मुटाव
तो भी उन के हित की करती सुख की कामना
खुद खुशियों से रहती कोसो दूर
लेकिन अपनों के लिए जग के सारे पर्व बन
खुशियों का बन जाती महासागर
दुआओं , आशीषों , आशीर्वादों का
बन के आसमान
करती जिंदगी गुलजार , आबाद
जीवन संग्राम में बनती ‘ गीता ‘ की कृष्ण – अर्जुन
मानवता की बन जाती है गुरुवाणी
संस्कारों में रामायण की चौपाई – सी
बुद्ध का ‘ आपो दीप बन ‘ के
हमें नित्य पाठ पढ़ाती
संतति की सफलता के सौपानों की चाह में
बन शुभकामनाओं की शहनाई
बजाती मंदिरों की घंटियाँ
करती आरती , अजान
उम्रभर घर में करे अवैतनिक काम
लगा देती अपना पूरा जीवन – जान
मीलों मील दुःख के सफर में चल
थाम लेती हाथ
अँधेरी – तपती जिंदगी में ला देती सवेरा
माँ तुम हो सूरज – चाँद की उजली किरण
छा गई मेरे तन – मन में साया बन
आदर्शों में प्रतिबिम्बित हो रही
बन के बिम्ब तुम्हारा
माँ के पावन चरणों में हैं
जग के सारे तीर्थ धाम
खुशकिस्मत हैं जग के जगवासी
जिनकी होती माँ – प्यारी माँ प्यारी – प्यारी
माँ के इतना सब कुछ करने के बाद
खुले हैं अनगिनत वृद्धाश्रम
करते हैं माँ का घोर अपमान
नहीं मिलता माँ जैसी देवी को सम्मान
‘ मातृ दिवस ‘ पर्व पर
हम सब करते कामना
‘ मंजु ‘ माँ को गले लगाएं
बहुत सुन्दर भावनाएं, बहुत अच्छी कविता !