कविता

शब्दों की सृष्टि में सृजनहार माँ

 

( मेरी माँ शान्ति देवी को समर्पित, जो ईश के संग मुझे दे रही आशीर्वाद )

हुई अनंत कृपा सरस्वती की
संवेदनाओं की लहरें बन बरसी
उर सागर की मसि ने
मन धरा के पृष्ठों पे
नीलगगन की कलम
‘ सदाबहार माँ ‘ को अंकित कर गई
उर के झरोखे से
माँ की व्यापकता की बयार
दिक् दिगंत में प्रतिध्वनित हो रहीं
ममता – वात्सल्य के आँचल का भूमण्डल बन
उतरी जग में ब्रह्माण्ड – सी
नौ माह खून को खून दे
सींचती सांसों से साँसें
ईश का प्रतिरूप – सी
सृजनहार -सी सृजन करती संतान
स्तनपान का अमृत पिला के
जीवन को जीवन रस -सी जीवन देती
प्रतिकूलताओं की बारिशों में
अनुकूलता का गोवर्धन बन
जीवन में सारे रंग भरती
हिमालय – सी दिन- रात प्रहरी बन
कुनजरों की बुरी बलाओं से
निदान के लिए नजर उतारती
दुःख की घड़ियों में
धड़कनों को धड़कनें बन
डगमगाते डगों को देती सहारा सदैव
माँ के बलिदानों की गाथा गाता इतिहास
माँ से हो जाए कितना भी मन मुटाव
तो भी उन के हित की करती सुख की कामना
खुद खुशियों से रहती कोसो दूर
लेकिन अपनों के लिए जग के सारे पर्व बन
खुशियों का बन जाती महासागर
दुआओं , आशीषों , आशीर्वादों का
बन के आसमान
करती जिंदगी गुलजार , आबाद
जीवन संग्राम में बनती ‘ गीता ‘ की कृष्ण – अर्जुन
मानवता की बन जाती है गुरुवाणी
संस्कारों में रामायण की चौपाई – सी
बुद्ध का ‘ आपो दीप बन ‘ के
हमें नित्य पाठ पढ़ाती
संतति की सफलता के सौपानों की चाह में
बन शुभकामनाओं की शहनाई
बजाती मंदिरों की घंटियाँ
करती आरती , अजान
उम्रभर घर में करे अवैतनिक काम
लगा देती अपना पूरा जीवन – जान
मीलों मील दुःख के सफर में चल
थाम लेती हाथ
अँधेरी – तपती जिंदगी में ला देती सवेरा
माँ तुम हो सूरज – चाँद की उजली किरण
छा गई मेरे तन – मन में साया बन
आदर्शों में प्रतिबिम्बित हो रही
बन के बिम्ब तुम्हारा
माँ के पावन चरणों में हैं
जग के सारे तीर्थ धाम
खुशकिस्मत हैं जग के जगवासी
जिनकी होती माँ – प्यारी माँ प्यारी – प्यारी
माँ के इतना सब कुछ करने के बाद
खुले हैं अनगिनत वृद्धाश्रम
करते हैं माँ का घोर अपमान
नहीं मिलता माँ जैसी देवी को सम्मान
‘ मातृ दिवस ‘ पर्व पर
हम सब करते कामना
‘ मंजु ‘ माँ को गले लगाएं

मंजु गुप्ता

जन्म : २१. २. १९५३ , ऋषिकेश , उत्तरांचल शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड शिक्षण : हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई संप्रति : सेवा निवृत मुख्य अध्यापिका , श्री राम है स्कूल , नेरूल , नवी मुंबई। कृतियाँ :प्रांतपर्वपयोधि काव्य,दीपक नैतिक कहानियाँ,सृष्टि खंडकाव्य,संगम काव्य अलबम नैतिक कहानियाँ , भारत महान बालगीत सार निबंध,परिवर्तन कहानियाँ। प्रेस में : जज्बा ( देश भक्ति गीत ) रुचियाँ : बागवानी , पेंटिंग , प्रौढ़ शिक्षा और सामाजिकता प्रकाशन : देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। उपलब्धियां : समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माॅडर्न कॉलेज वाशी द्वारा सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि कवि सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन आदि। संपर्क :19, द्वारका, प्लॉट क्रमांक 31, सेक्टर 9A वाशी, नवी मुंबई400703 भारत . फोन : 022 - 27882407 / 09833960213 ई मेल : [email protected]

One thought on “शब्दों की सृष्टि में सृजनहार माँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर भावनाएं, बहुत अच्छी कविता !

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