कब मिलेगी मंज़िल
मंज़िल की तलाश में अब थम गया है दिल
ऐ वक्त बता दे कब मिलेगी मेरी मंज़िल
ख्वाबों के मंजिलों में मैंने हौंसले का पर लगाया
न राह दिखाया किसी ने न उड़ना सिखाया
मेहनत की चिंगारी से पथ में रौशनी जलाया
नसीब की झोंके ने तो उसे भी बुझाया
पिछे कदम नहीं किया हो चाहे काँटे या कील
ऐ वक्त बता दे कब मिलेगी मंज़िल
मैं जानती हूँ तू हर पथिक का लेता है इम्तिहान
पर इतनी भी न ले कि पथ में ही दे दे जान
क्यों तुम ठहर गये हो क्या चाहिए आराम
मैं तो चलती रहूँगी मुझे पाना है मकाम
अब कौन सी तूफान से घिरा है साहिल
ऐ वक्त बता दे कब मिलेगी मंज़िल
ऊँचा था मकाम तो तूने ख्वाब क्यों दिखाया
जो मंज़िल तक न जाये ऐसा राह क्यों बताया
ख्वाबों की आसियाँ में मैंने क़ई तिनके लगाया
क्यों रुठी है मंज़िल मुझसे मैंने हर फर्ज निभाया
मैं भी बहुत जिद्दी हूँ उसे करके रहूँगी हासिल
ऐ वक्त बता दे कब मिलेगी मंज़िल
— दीपिका कुमारी दीप्ति
वाह अतीव सुंदर
आप सब का हार्दिक धन्यवाद सर !
सुंदर दीप्ति जी
बहुत अच्छा गीत !
क्या बात है दीप्ति जी
“ऊँची थी मकाम तो तुने ख्वाब क्यों दिखायाजो मंजील तक न जाये ऐसा राह क्यों बताया!”