कविता

मधुशाला

ना जाने कब क्या कर बैठे, अपने मन की है ज्वाला

यारों देखों शान्त न होती, पी पी कर इसकी हाला

हवस हंसीली नारी नठीली, पिए अमृत भरि-भरि प्याला

चितवन चटकाय कलंकन बिच, नाचे नचवाये मधुशाला ||

उपहास करार करें पल में, नटी जाय नचाय विरह बाला

मुसुकाय चलें रहिया ठिठकें, भरमाय गले पहिरें माला

रूप पुकारे काम पियारे, मद-मस्ती छलकाए नटशाला

जीत हार कर हार कराये, घर बिरह कराये मधुशाला ||

तन बोझिल चित चंचल है, मन विवस विरह आंसुवाला

खुद से करार हर रोज करें, विश्वास डिगे देखत प्याला

जीभ सरक जब होठ मिले, टूटे मन अंकुश उईलाला

सबरस नीरस लागे जगत, जब ढाकि पियाये मधुशाला ||

मधुमास बसंत बयार बहे, फागुन भर फाग रहें प्याला

मदमस्ती यौवन ताकि रहें, इतराय चलें हरषित बाला

कोमल किसलय अंकुर डाली, हरषे हिरनी बने मृगछाला

बौराए ऋतु बोले पपीहा, पिया पी पी बुलाये मधुशाला ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

7 thoughts on “मधुशाला

    • महातम मिश्र

      बहुत बहुत धन्यवाद रमेश कुमार जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया, लेकिन छंद सही नहीं बने. थोडा सुधार कीजिये कि लय बन जाये.

    • महातम मिश्र

      मार्गदर्शन के लिए आभार मान्यवर श्री विजय कुमार सिंघल जी, मनन करूँगा……

    • महातम मिश्र

      आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी, मैंने कुछ सुधार किया है देखें और बताएं, आभार…….

      • विजय कुमार सिंघल

        हाँ, अब काफी हद तक ठीक है. हालाँकि अभी सुधार की गुंजायश बाकी है.

        • महातम मिश्र

          कोशिश रहेगी कि रचना आप के मानक पर खरी उतरे, छंद और लय दोनों पर सार्थक प्रयास रहेंगा, बस आप इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये सम्माननीय श्री विजय कुमार सिंघल जी, सादर धन्यवाद सह आभार…….

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