कविता

खिलखिलाती रही

कतरा कतरा बन
जि़न्दगी गिरती रही
समेट उन्हें, मै
यादों में सहेजती रही
अनमना मन मुझसे
क्या मांगे,पता नहीं
पर हर घड़ी धूप सी
मैं ढलती रही
रात, उदासी की चादर
ओढा़ने को आतुर बहुत
पर मैं तो
चाँद में ही अपनी
खुशियाँ ढूंढती रही
और चाँदनी सी
खिलखिलाती रही

कनेरी महेश्वरी

जन्म तिथि_ २६ नवम्बर १९४७ जन्म स्थल_ देहरा दून उत्तराखण्ड शिक्षा_ स्नातक माता_ स्वर्गीय श्री कुशाल सिंह रजवार माता_ स्वर्गीय श्रीमती रुकमणी देवी व्यवसाय _ केन्द्रीय विद्यालय से मुख्य अध्यापिका के रुप्में सेवा निवृत काव्य संग्रह_’आओ मिल कर गाए गीत अनेक’ (बाल गीत संग्रह) “सरस अनुभूति” - साझा काव्य संग्रह_ टुटते सितारो की उड़ान, प्रतिभाओं की कमी नहीं अन्य कृतियाँ_ (ओडियो कैसेट) “गीत नाटिका” संग्रह बच्चों के लिए, “मूर्तिकार सम्मान _ १.प्रोत्साहन पुरस्कार द्वारा, केन्द्रीय विधालय संगठन १९९४ २ - राष्ट्र्पति पुरस्कार,२००० ब्लांग_ मुख्य ब्लांग “अभिव्यंजना बच्चों के लिए ब्लाग “बाल मन की राहें ब्लाग पता http://kaneriabhivainjana.blogspot.in ई-मेल _maheshwari.kaneri@gmail.com पता ७९/१ नैशविल्ला रोड़ देहरा दून उत्तराखंड़ पिन कोड़ न. २४८००१ फोन _ 9897065543

One thought on “खिलखिलाती रही

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कविता !

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