कविता

पत्थर का शहर

तुम्हें याद है न.. कभी तुम्हारे अंदर एक गाँव बसा करता था लहलहाते खेतों की ताज़गी लिए भोला भाला,सीधा साधा सा गाँव और उसी गाँव में मेरा भी घर हुआ करता था मिट्टी से लिपा हुआ भीनी भीनी खुशबू लिए एक प्यार पला करता था एक छोटा प्यारा सा घर पर तुम ने ये क्या […]

लघुकथा

कहानी : बच्चों की खातिर

शापिग कामप्लेक्स में घुसते ही जोरदार स्लूट मारकर जिस गेटकीपर ने दरवाजा खोला,उसे देखते ही मैं अवाक रह गई।अचानक मुँह से निकल पड़ा “अरे! श्यामलाल यहाँ कैसे ?.. कैसे हो?” उसके जवाब देने से पहले ही मैं फिर बोल उठी “ रिटार्ड हो गए क्या? वह झेपता हुआ सा हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। श्याम […]

कविता

खिलखिलाती रही

कतरा कतरा बन जि़न्दगी गिरती रही समेट उन्हें, मै यादों में सहेजती रही अनमना मन मुझसे क्या मांगे,पता नहीं पर हर घड़ी धूप सी मैं ढलती रही रात, उदासी की चादर ओढा़ने को आतुर बहुत पर मैं तो चाँद में ही अपनी खुशियाँ ढूंढती रही और चाँदनी सी खिलखिलाती रही