अन्नदाता
एक आदमी अपने रास्ते से गुजर रहा था | सड़क के दोनों किनारों पर आम के बहुत से बाग फलों से लदकर जमीन को छू रहें थे | फल के बावजूद बागों में चहल-पहल न देख उसे आश्चर्य लगा | बागों में कोई रखवार नहीं, कोई बाड़ नही, फिर यह बगिया अपने आप सुन्दर फलों को लेकर सुरक्षित कैसे है | इसी उधेड़-बुन में खोये हुए राहगीर को एक बाग में एक झोपड़ी व एक आदमी दिखाई दिया | अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए वह बाग में गया और उस आदमी से पूछा कि भाई यह आप की ही बगिया है | इसपर उस आदमी ने जबाब दिया कि हम एक किसान हैं और यह बगिया मेरी ही है बताइए मै आप की क्या सेवा कर सकता हूँ | राहगीर ने कहाँ मै मीलों दूर से इसी तरह के बाग देखते आ रहा हूँ हर बाग फलों से भरपूर लदे हुए हैं पर किसी भी बाग में कोई रखवार या मालिक नहीं है जो इन फलों की देखभाल कर सकें | सुनसान बाग देखकर लोंग-बाग फल तोडकर अपने-अपने घर ले जाते होंगे तो आप किसानों का बहुत सारा नुकशान होता होगा |
राहगीर की अपनत्व भरी बात सुनकर किसान हंसने लगा और कहाँ कि हम जमीन से जुड़े हुए किसान हैं | जमीन की उपज में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बहुतों का हिस्सा होता है | सब अपने नशीब का खाते हैं जिसके नसीब में जो है वह ले जायेगा | रखवारी करें न करें, आप आश्वस्त रहें धरती मैया बहुत कुछ देती हैं | हम किसान अपने धर्म-कर्म पर संतोष करते हैं | सब कुछ के लुटने-टूटने के बाद जो बच जाता है वही हमारा अपना होता है | नुकशान-फायदा का हिसाब लगाएंगे तो न यह बाग रहेगी ना ही यह फल दिखेगा | संतोष का दूसरा नाम ही तो किसान है | राहगीर उस किसान की बात सुनकर और भी हैरान हों जाता है | पूछता है, भाई किसानी में और किस-किस तरह का नुकशान होता है | किसान उससे कहता है कि मेरे भाई, अगर आप सुनना ही चाहते हैं तो सुनिए, सबसे पहले मोर खाय, ढोर खाय, चोर खाय, तोर खाय, मांग बहोर खाय | सबके खाने के बाद जो बच जाय वह किसान और किसान का परिवार खाय | राहगीर के समझ में किसान की बात न आयी तो उसने कहाँ कि विस्तार से बताइए मै आप की बात समझ न सका |
किसान ने कहाँ कि सबसे पहले जब बीज खेतों में डाल दिया जाता है तो मोर यानि पक्षी अपनी भूख मिटाने के लिए बीज का दाना चुन-चुन कर खाते हैं | उसके बाद बचा हुआ दाना अंकुरित होकर थोड़ा बडा होता है तो ढोर यानि जानवर उससे अपनी भूख मिटाता है | जब पौधों में फल आता है तो राह चलता मनुष्य उसे समय से पहले ही तोर यानि तोड़ लेता है और अपनी तृष्णा शान्त करता है | उसके बाद चोरी करके लोंग-बाग अपनी दानत और मज़बूरी के अधीन होकर अपने-अपने विचारों से खुश होते है | फिर माँगने और बहोरने वाले अपनी गरीबी में खलिहान से पका हुआ कुछ अन्न ले जाते है | तत्पश्चात भगवान को नई फसल का भोग लगता है | इसके बाद जो बच जाता है वह किसान खुशी-खुशी अपने घर लाता है और उससे अपने सपनों को साकार करता है | इसके बाद खुदा न खास्ता अगर कुदरती हवा चल गयी तो भूखे रहकर अगले मौसम की राह देखते हुए किसान समय पसार करता है और फिर उसकी फसल लहलहाने लगती है | किसान की दरियादिली देख वह राहगीर निहाल हों जाता है और वर्षों से बेकार पड़ी अपनी पुस्तैनी जमीन पर जाकर खेती का काम शुरू कर देता है | राहगीर इस कहावत “उत्तम खेती मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी खेत निदान” के सच को सच पुरवार करते हुए अपने खेतों में तल्लीन हों जाता है |
अचानक कुछ दिन बाद एक किसान के आत्महत्या की खबर से वह विचलित होकर बिलख पडता है | उसके समझ में नहीं आता कि अपने खजाने को लुटानेवाला किसान, इस कायरतापूर्ण काम को कैसे कर सकता है | कुछ तो बात जरूर है जो एक किसान की छवि को कलंकित कर रही है | उसका बोझिल मन उस किसान के पार्थिव के इर्द-गिर्द विचरने लगता है | कुछ भी तो नहीं मिला उसके आत्महत्या के सबूत में उसको | हाँ उसकों कफ़न पर कर्ज का बोझ जरुर दिखाई दिया | दूसरी तरफ स्वर्गस्थ किसान का बिलखता हुआ गमगीन परिवार मिला तो कर्ज देनेवाले और किश्त लेने वालों का लटका हुआ किरदार भी मिला | साथ ही साथ सियासत करने वाले और मिडिया के साथ फोटो खिचवाने वालों की उमड़ी हुयी भीड़ भी चहलकदमी करते हुए दिखी उसे | यह सब देख तडफ गया राहगीर और सिसक पड़ा, रोज-रोज की किल्लतों और मज़बूरी से छुटकारा पाने के लिए तडफ-तडफ कर मर तो गया एक साहसी किसान और तमाशा बन गया तमाशबीनों के लिए ……..उफ़……धत्तेरे की…….क्यों और किसके लिए मर गया यह अन्नदाता, कोई बताएगा??????
महातम मिश्र
जी श्रीमान जी कहानी बहुत सुन्दर लगीं हमको भी ..
सादर धन्यवाद रमेश सिंह जी आप को कहानी पसंद आयी, मेरा मनोबल बढ़ा, आभार…….
भाई साहब , अन्दाता मर रहा है , वोह दिन दूर नहीं जब इन अन्दातों के बगैर आम लोग भी मरने लगेंगे . जब हमें समझ आएगा तब बहुत देर हो चुकी होगी .
सादर धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी, कहानी ने आप से अपना सन्देश कहा और आप सहमत हुए, आभार मान्यवर…..
बढ़िया कहानी. बहुत कुछ सोचने को बाध्य करती है.
सादर आभार श्री विजय कुमार सिंघल जी, खुशी मिली मुझे कि कहानी आप को पसंद आयी…….